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________________ ६६ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतिस्व महामयण महीमर चडीयो गयबर, कम्मह परिकर साथि कियो मछर मद माया व्यसन विकाया, पाखंड राया साथि लियो । उधर विजयकीर्ति ध्यान में तल्लीन थे। कामदेव और उसके साथियों की एक भी नहीं उसी क्षण वहां से भागना पड़ा । उन्होंने शम, दम एवं यम के द्वारा चलने दी जिससे मदन राज को झूटा झूट करीय तिहाँ लगा, भयणराय तिहां तलक्षण भग्गा आगति यो मयाधिय नासइ, ज्ञान खडक मुनि अतिहि प्रकासइ ||२७|| इस प्रकार इस गीत में शुभचन्द्र ने विजयकीर्ति के चरित्र की निर्मलता, ध्यान की गहनता एवं ज्ञान की महत्ता पर अच्छा प्रकाश डाला है । इस गीत में उनके महान व्यक्तित्व की झलक मिलती है । विजयकीर्ति के महान व्यक्तित्व की सभी परवर्ती कवियों एवं भट्टारकों ने प्रशंसा की है । ब० कामराज ने उन्हें सुप्रचारक के रूप में स्मरण किया हैं ।" भ० सकल भूपण ने यशस्त्री, महामना, मोक्षसुखाभिलाषी प्राथि विशेषणों से उनकी कीर्ति का बखान किया है। शुभचन्द्र तो उनके प्रधान शिष्य थे ही, उन्होंने अपनी प्रायः सभी कृतियों में उनका उल्लेख किया है। श्रोणिक चरित्र में यतिराज, पुण्यमूर्ति श्रादि विशेषणों से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है । जयति विजयकीर्तिः पुन्यमूर्तिः सुकीर्तिः जयतु च यतिराजो भूमिपः स्पृष्टपादः । नवनलिन हिमांशु ज्ञान भूषस्य पट्टे विविध पर विवाद समांरे वज्रपातः ॥ : किचरित्र : भ० देवेन्द्रकोर्ति एवं लक्ष्मीचन्द चादवाड़ ने भी अपनी कृतियों में विजयकीर्ति का निम्न दाब्दों में उल्लेख किया है । १. विजयकीर्तियो भवन भट्टारकोपवेशिनः ।।७।। जयकुमार पुराण २. भट्टारक: श्रीविजयाविकी तिस्तदीयपट्टे वरलब्धतिः । महामना मोक्षसुख ।भिलाषी वभूव जंभावनी यापावः ॥ उपदेशरत्नमाला PLEN
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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