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________________ भक विजयकोत्ति नाद एह वेरि वरिंग रंगि कोई नावीमो । मूल संघि पट बंध विविह भावि भावीयो । तसह भेरी ढोल नाद वाद तह जपन्नो। भरिण मार तेह नारि कवण आज नीपन्नो । कामदेव ने तत्काल देवांगनाओं को बुलाया और विजयकीर्ति के मंयम को भंग करने की पाना दी लेकिन जब देवांगनानों ने विजयकीर्ति के बारे में सुना तो उन्हें अत्यधिक दुख हुआ और सन्स' के पास जाने में कल्ट अनुभव करने लगी । इस पर कामदेव ने उन्हें निम्न शब्दों से उत्साहित किया। वयण मुनि नद कामिणी दुख धरिह महंत । फही विमासण मझवी नवि वार्यो रहि कंत ।।१३।। रे कामणि म करि तु दुखह इन्द्र नरेन्द्र मगाच्या मित्रह । हरि हर वंभमि कीया रंकह । लोय सम्छ मम वसाहुं गिसकह ।।१४।। _ इसके पश्चात् क्रोत्र, मान, मद एव मिथ्यात्व की सेना खड़ी की गई। चारों ओर वसन्त ऋतु जैसा सुहावनी ऋतु करदो गई जिसमें कोमल कुहु कुहु करने लगी और भ्रमर मुजरने लगे । भेरी बजने लगी । इन सब ने सन्त विजयकीति के चारों और ओ माया जाल बिछाया उसका वर्णन कवि के शब्दों में पदिये। वाल्लंत खेलंत चालत धावत धूरणत धूजत हाक्कन पुरंत मोडत तुदंत मत खंजत मुक्कत मारत रंगण फाईल जावंत घालंत फेडत वग्गेण । जाणीय मार गमणं रमणं थ लीसो । वोल्यावह निज बलं सकल सुधीसो। रायं गणंयता गयो बह युद्ध कती ।।१८।। कामदेव की सेना आपस में मिल गई । बाजे बजने लगे । कितने ही सैनिक . नाचने लगे। धनुषवाण चलने लगे और भोषण नाद होने लगा । मिथ्यात्व तो देखते हो डर गया और कहने लगा कि इस सन्त ने सो मिथ्यात्व रूपी महान विकार को पहिले ही पी डाला है। इसके पश्चात कुमति की बारी आयी लेकिन उसे भी कोई सफलता नहीं मिली। मोह को सेना भी शीघ्र ही भाग गई । अन्त में स्वयं कामदेव ने कम रूपी सेना के साथ उस पर मात्रामा किया।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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