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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतदि मादिनाथ का जन्म हुमा । देवों एवं इन्द्रों ने मिलकर खूब उत्सव मनाये। पांडक शिला पर ले जाकर अभिषेक किया और बालक का नाम ऋषभदेव रखा गया आहे अमिष पूर सीध मध अंगि विलये। प्रोगीय अगि कारवाउ कीधउ यहू आक्षेप ॥८४11 पाहे आणीय बहुत विभूषण दूषण रहित प्रभंग। पहिराव्या ते मनि रली वली बली जोमद अंग ।।८५।। आहे नाम अषम जिन दीघउ की नाटक 'चंग । रूप निरुपम देखीय हरषिइ मरीयां अंग ।।८६॥ 'बालक आदिनाथ' दिन २ बड़े होने लगे । उनको खिलाने, पिलाने, स्नान कराने आदि के लिये अलग अलग सेविकाए थी । देवियां अलग थी। इसी 'बाललोला' एक वर्णन देखिए: आहे देवकुमार रमाडइ मातज माउर क्षीर । एक घरइ मुख प्रागलि आगीय निरमल नीर ॥९३|| आहे एक हंसाबइ ल्यावह कइडि चहावीय बाल । नीति नहींय नहींय सलेखन नह मुखि लाल ॥६४|| आहे आंगीय नगि अनोपम उपम रहित शरीर । टोपीय उपीय मस्तकि बालक छह परणवीर ।।९५।। आहे कानेम कूल झलकह स्खलकह नेउर पाइ । जिम जिम निरखद' हरखइ हियडइ तिय तिय माइ ॥१६॥ आदिनाथ ने बड़े ठाट-बाट से राज्य किया । उनके राज्य में सारी प्रजा आनन्द से रहती थी। वे इन्द्र । रामान राज्य-कार्य करते थे। माहे राभि नरेता सुरेश, मिलीनइ दीधज राज । सर्व प्रजा बज हरखीउ, हरखीउ देव समाज ।।१५४।। एक दिन नीलंजना नामकादेव नर्तकी उनके सामने नृत्य कर रही थी कि वह देखते २ मर गयी । आदिनाथ वो यह देख कर जगत से उदासीनता हो गयी। आहे धिग २ इह संसार, बेकार अपार असार । नहीं सम भार समान कुमार रमा परिवार ||१६४|| आहे घर पुर नगर नहीं निज रज सम राज भकाज | ह्य गय पयदल चल मल सरिखउ नारि समाज ||१६५।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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