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________________ अट्टारक ज्ञानभूषण ४. आबिश्वर फाग 'प्रादीश्वर फाग' इनकी हिन्दी रचनाओं में प्रसिद्ध रचना है। फागु संज्ञक काव्यों में इस कृति का विशिष्ट स्थान है। जैन कवियों ने काव्य के विभिन्न रूपों में संस्कृत एवं हिन्दी में साहित्य लिखा है उससे उनके काव्य रसिकता की स्पष्ट झलक मिलती है। जैन कवि पक्के मनोवैज्ञानिक थे । पाठकों को किया पूरा ध्यान रखते थे इसलिये कभी फाट, कभी रास, कभी वेति एवं कभी चरित संज्ञक रचनाओं में पाठकों के ज्ञान की अभिवृद्धि करते रहते थे । ' आदीश्वर फाग' इनकी अच्छी रचना है, जो दो भाषा में निवद्ध है इसमें भगवान आदिनाथ के जीवन का संक्षिप्त वर्णन है जो पहले संस्कृत एवं फिर हिन्दी में वरित है। कृति में दोनों भाषाओं के ५०१ पद्म है जिनमें २६२ हिन्दी के तथा शेष २३९ पद्य संस्कृत के हैं। रचना की श्लोक गं० ५९१ है । कवि ने रचना के प्रारम्भ में विषय का वर्णन निम्न छन्द में किया है: आहे मयि भगवति रारसति जगति विबोधन माय । मास्य आदि जिणंद, सुरिदवि वंदित पाय ॥२॥ X X X 1 आहे तस धरि मरुदेबो रमणीय रमणीय गुण मशास्त्राणि । रूपर नहीं कोइ तोलाइ बोलइ मधुरीय बारि ||१०|| आहे एक कटी तट बांधड़ हंसतीय रसना लेवि । नेवर कॉबीय नाबीय एक पहिरावड़ देनि ॥१७॥ X माता मरुदेवी के गर्भ में आदिनाथ स्वामी के भरते हो देवियों द्वारा माता की सेवा की जाने लगी। नाच-गान होने लगे एवं उन्हें प्रतिपल प्रसन्न रखा जाने लगा । आहे अंगुली पग वीडीया वीड़ीयनु आकार । पहिराव गुथला, अंगूठइ सगार ॥११८॥ आहे कमल तणी जिसी पांखड़ी बांखड़ी आज एक । fig घालइ सइइ थंड देणी एक ॥१९॥ ५७ आहे देवीय तेवड़ तेवड़ी केवड़ी ना लेई फूल । प्रगट मुकट रचना कर तेह तरण नहीं भुल ||२०||
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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