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________________ जस्थान के जन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व की प्रतिमा डूंगरपुर के ऊडे मन्दिर में विराजमान है । यह संभवतः अापके कर कमलों से सम्पादित होने वाला अन्तिम समारोह था । इसके पश्चात् संवत् १५५७ तक इन्होंने कितने आयोजनों में भाग लिया इसका अभी कोई उल्लेख नहीं मिल सत्रा है। संवत् १५६०२ व १५६१३ में सम्पन्न प्रतिष्ठाओं के प्रवक्ष्य उल्लेख मिले है । लेकिन वे दोनों ही इनके पट्ट शिष्य भ० विजयकीति द्वारा सम्पन्न हुए थे। उक्त दोनों ही लेख डूंगरपुर के मन्दिर में उपलब्ध होते हैं। साहित्य साधना ___ज्ञानभूषण भट्टारक बनने से पूर्व और इस पद को छोड़ने के पश्चात् भी साहित्य-साधना में लगे रहे। वे जबरदस्त सहित्य-सेवी थे। प्राकृत संस्कृत हिन्दी गुजराती एवं राजस्थानी भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था। इन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी में मौलिक कृतियां निबद्ध की और प्राकृत नथों की संस्कृत टीकाएँ लिस्ली। यद्यपि संख्या की दृष्टि से इनकी कृतियां अधिक नहीं हैं फिर भी जो कुछ हैं वे ही इनकी विद्वत्ता एवं पांडित्य को प्रदर्शित करने के लिये पर्याप्त हैं। श्री नाथूराम जी प्रेमी ने इनके "तत्वज्ञानतरंगिणी, सिद्धान्तसार भाष्य, परमार्थोपदेशा, नेमिनिर्वाण की पञ्जिका टोका, गवास्तिकाय, दशलक्षणोद्यापन, प्रादीश्वर फाग, भक्तामरोद्यापन, सरस्वतीपूजा'' ग्रन्थों का उल्लेख किया है । पंडित परमानन्द जी ने उक्त wwrerouwwwwwwwmarawwwwwwwwwwneron. १. संवत् १५५२ वर्ष जष्ठ वदी ७ शुभ थी मलसंघे सरस्वतीगच्छे बलास्कारगणे भ. श्री सफलफीत्ति तत्प भट्टारक श्री भुवनकोति तस्पट्ट भ. श्री ज्ञानभूषण गुरुपदेशात् हूंघट गातीय करण भार्या साणी सुत नाना भार्या हीर सुत सांगा भार्या पहतो नेमिमाए एतैः नित्यं प्रणमंति। २. संग्त् १५६० वर्षे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री ज्ञानभूषण तत्प? भ. श्री विजयकोसिगुरूपदेशात् बाई श्री गोलु न श्रीबाई श्रोविनय श्रोतिमान पंसितत उद्यापने श्री चन्द्रप्रभ । ३. संवत १५६१ वर्षे चैत्र बबी ८ शुक्र श्री मूलसंधे सरस्वती गच्छे भट्टारक श्री सकलकोत्ति तत्प भ, श्री भुवनकोति तरपट्ट भ, श्री शानभूषण तत्पट्ट भ. विजयकोत्ति गुरूपदेशात् हवड जातीय टिठ लखमण भार्या मरगदी सुत समवर भार्या मना सुत से गंगा भार्या वहिल सुत हरखा होरा सठा नित्यं श्री आदीश्वर प्ररणमति बाई मचा पिता दोसी रामा भार्या पूरी पुत्री रंगी एते प्रणमति । ४, देखिये पं. नाथूरामजो प्रेमी कृत जैन साहित्य और इतिहास-- पृष्ठ - ३८२
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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