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________________ 1 राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतिस्व उक्त पद में हव ं, चंग गुजराती भाषा के कहे जा सकते हैं। इस तरह कवि अपनी रचनाओं में गुजराती भाषा के कहीं कम और कहीं अधिक शब्दों का प्रयोग करते हैं लेकिन इससे कवि की कृतियों की भाषा को राजस्थानी मानने में कोई श्रीपत्ति नहीं हो सकती । ३८ इस प्रकार कवि जिनदास अपने युग का प्रतिनिधित्व करने वाले कवि कहे जा सकते है | इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा हिन्दी के कवियों का वातावरण तयार वारने में प्रत्यधिक सहयोग दिया और इनका अनुसरण इनके बाद होने वाले कवियों ने किया। इतना ही नहीं इन्होंने जिन छन्दों एवं दानी में कृतियों का सृजन किया उन्हीं छन्दों का इनके परवर्ती कवियों ने उपयोग किया। वस्तुबंध छन्द इन्हीं का लाउला छन्द था और ये इरा छन्द का उपयोग अपनी रचनाथों में मुख्यतः करते रहे हैं । दूहा, चपई एवं भाग जिसके कितने ही रूप हैं, इनकी रचनाओं में काफी उपयोग हुआ है | वास्तव में इनकी कृतियां छन्द शास्त्र का प्रध्ययन करने के लिये उत्तम साधन है । मूल्यांकन : 'ब्रह्मजिनदास' को कृतियों का मूल्यांकन करना सहज कार्य नहीं है, क्योंकि उनकी संख्या ६० ने भी ऊपर है। वे महाकवि थे, जिनमें विविध विषयक साहित्य को निबद्ध करने का अद्भुत सामर्थ्य था । भ० सकलकीति एवं भुवनकीति के संघ में रहना, दोनों के समय समय पर दिये जाने वाले आदेशों को भी मानना, समारोह एवं अन्य आयोजनों में तथा तीर्थयात्रा संघ में भी उनके साथ रहना और अपने पद के अनुसार श्रात्ममाधना करना आदि के अतिरिक्त ६० से अधिक कृतियों को निबद्ध करना उनकी अलोकिक प्रतिभा का सूचक है । कवि की संस्कृत भाषा में निवद्ध रामचरित एवं हरिवंश पुराण तथा हिन्दी भाषा में निबद्ध रामसीता राम, हरिवंग पुराण, श्रादिनाथ पुराण आदि कृतियां महाकाव्य के समकक्ष को रचनायें है जिनके लेखन में कवि को काफी समय लगा होगा | 'ब्रह्म जिनदास' ने हिन्दी भाषा में इतनी अधिक कृतियों की उस समय रचना की थी जब 'हिन्दी' लोकप्रिय भाषा भी नहीं बन सकी थी और संस्कृत भाषा में काव्य रचना को पाण्डित्य की निशानी समझी जाती थी । कवि के समय में तो संभवतः 'महाकवि कबीरदास' को भी वर्तमान यातादि के समान प्रसिद्धि प्राप्त नहीं हुई थी। इसलिये कवि का हिन्दी म सर्वथा स्तुत्य है । कवि की कृतियों में काव्य के विविध लक्षणों का समावेश है। यद्यपि प्रायः सभी काव्य शान्त रस पर्यवसानी है, लेकिन वीर, शृंगार, हास्य यादि रसों का यत्र तत्र अच्छा प्रयोग हुआ है । कवि में काव्य के आकर्षक रीति से कहने की क्षमता है। उसने अपने काव्यों को न तो इतना अधिक जटिल ही बनाया कि पाठकों का पढ़ना
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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