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________________ ब्रह्मजिनदास मस्लिम भाग - भाषा मद्रबाहु सुनी भद्रबाहु मुनी संघ रि सार | पंचम श्रुत केवली गुरू, घरम नांव ससार तारस । दिगम्बर निग्रन्थ सुनि जिन सकल उद्योत कारण । ए मुनि श्राह्य वाइस्युं, कहीयु निरमल रास 1 ब्रह्म जिशादास इणी परिभरगो, गाई सिधपुर वास । afa का मुख्य क्षेत्र डूंगरपुर, सागवाड़ा, गलियाकोट, ईडर, सूरत वादि स्थान थे । ये स्थान बागड़ प्रदेश एवं गुजरात के अन्तर्गत थे जहां जन साधारण को गुजराती एवं राजस्थानी बोली थी। इसलिए इनकी रचनाओं पर भी गुजराती भाषा का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई देता है । कहीं कहीं तो ऐसा लगता है मानों कोई गुजरातो रचना ही हो। इनकी भाषा को राजस्थानी की संज्ञा दी जा सकती है। यह समय हिन्दी का एक परीक्षण काल था और वह उसमें खरी सिद्ध होकर आगे बढ रही श्री । ब्रह्मजिनदास के इस काल को रासो काल की संज्ञा दी जा सकती है। गुजराती शब्दों को हिन्दीवालों ने अपना लिया था और उनका प्रयोग अपनी अपनी रचनाओं में करने लगे थे। जिसका स्पष्ट उदाहरण ब्रह्म जिनदास एवं बागड प्रदेश में होने वाले अन्य जैन कवियों की रचनाओं में मिलता है । अजितनाथ राम के प्रारम्भ का इनका एक मंगलाचरण देखिए P श्री सकलकोत्ति गुरू प्रणमीने मुनि भुवनको रति अवतार । रारा कियो में निरमलो. अजित जिलर सार || पढेइ सोइ जे सांभले, मति घर निर्मल भाव । तेह करि रिथि घर तणो पाये शिवपुर ठाम ॥ जिरा सासा अति निरमलो, भवि भवि देउ मुहसार । ब्रह्म जिनदास इम यौनवे, श्री जिरणवर मुगति दातार || ૩૭ उक्त उद्धरण में प्रणमीन में, तरणों शब्द गुजराती भाषा के कहे जा प्रकते है । इसी तरह जम्बूस्वामी रास का एक और उद्धरण देखिए afar भाव सुर प्राज कहिय वर बाणी । जम्बू कुमार चरित्र गायन मधुरीय वाणी ॥ २ ॥ अन्तिम केवली ह ́ बंग जम्बूस्वामी गुणवंत | रूप सोमा अपार सार सुललित जयवंत ॥ ३ ॥ जम्बू द्वीप मझार सार भरत क्षेत्र जाण । भरत क्षेत्र मांहि देव सर मगध बखा ॥ ४ ॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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