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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्य सकलकोत्ति मुनि रासु कियउए सोलहकारण । पढहि गुण हि जो सांभल हि तिन्ह सिव सुह कारण । ६. शान्तिनाथ फागु-इस कृति को खोज निकालने का थ य श्री कुन्दनलाल जैन को है । इस फागु काव्य में शान्तिनाथ तीर्थंकर का संक्षिप्त जीवन चरिणत है। हिन्दी के साथ कहीं २ प्राकृत गाथा एवं संस्कृत श्लोक भी प्रयुक्त हुए हैं। फागु की भाषा सरस एवं मनोहारी है। एक उदाहरण देखिये राम--नृा सुत रमरिण गजगति रगगी तरूणी सभ क्रीडतरे । बहु गुण नागर अवघि दिवाकर मुभकर निसि दिन पुण्य रे। ईडिय मय सुख पालिय जिन दिख सनमुख पातम ध्यान रे । भासविथना मूकी असुना प्राशा जिनवर लेवि रे। मूल्यांकन "भट्टारक सकलकीति' संस्कृत के आचार्य थे । उन्होंने जो इस भाषा में विविध विषयक कृतियां लिखीं. उनसे उनके अगाध ज्ञान का सहज ही पता चलता है । यद्यपि सकलकत्ति ने लिखने के लिए ही कोई कृति लिखी हो-ऐसी बात नहीं है, किन्तु उनको अपने मालिक विचारों में मी आपलापित किया है । यदि उन्होंने पुराण विषयक कृतियों में प्राचार्य परम्परा द्वारा प्रवाहित विचारों को ही स्थान दिया है तो चरित कायों में अपने पौष्टिक ज्ञान का भी परिचय दिया है। वास्तव में इन काव्यों में भारतीय संस्कृति के विभिन्न अंगों को अच्छी तरह दर्शन किया जा सकता है । जैन दर्शन को दार्शनिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृत्तियों के अतिरिक्त आचार एवं चरित निर्माण, व्यापार, न्यायव्यवस्था, औद्योगिक प्रवृत्तियां, भोजन पान व्यवस्था, वस्त्र-परिधान प्रकृतिव, मनोरंजन आदि सामान्य विषयों की भी अहाँ कहीं चर्चा हुई है और कवि ने अपने विचारों के अनुसार उनके वर्णन का भी ध्यान रखा है। भगवान के स्तवन के रूप में जब कुछ अधिक नहीं लिया जा सका तो उन्होंने पूजा के रूप में उनका यशोगान गाया-जो कवि की, भगवद्भक्ति की योर प्रवृत्त होने का संकेत करता है । यही नहीं, उन्होंने इन पूजामों के माध्यम से तत्कालीन समाज में 'प्रर्हत-भक्ति के प्रति गहरी आस्था बनाये रखी और प्रागे धाने वाली सन्तति के लिए 'अर्हत-भक्ति का मार्ग खोल दिया । सिद्धान्त, तत्वचर्चा एवं दर्शन के पोत्र में -सिद्धान्त सारदीपक, तत्वार्थसार, प्रागमसार, कर्मविपाक जैसी कृतियों के माध्यम से उन्होंने जनता को प्रभूत साहित्य १. देखिये अनेकान्त वर्ष १६ किरण ४ पृष्ठ संख्या २८२
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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