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________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पूजा ग्रंथ २६. अष्टालिकापूजा २७. सोलहकारगपूजा २८. गणधर बलमपूजा राजस्थानी कृतियाँ १. आराधनः प्रतिबीयसार २. नेमीश्वर गीत ३. मुक्तावलि गीत ४. रामोकारफल गीत ५. सोलह कारण रास ६. सारसीखामणिरास ७. शान्तिनाय फागु उक्त कृतियों के अतिरिक्त अमी और भी रचनाएं हो सकती हैं जिनका अभी खोज होना बाकी है । भ० सालकीत्ति की संस्कृत भाषा के समान राजस्थानी भाषा में भी कोई बड़ी रचना मिलनी चाहिए, क्योंकि इनके प्रमुख शिष्य ब्रम जिनदास ने इन्हीं की प्रेरणा एवं उपदेश से राजस्थानी भाषा में ५० से भी अधिक रचनाएं निबद्ध की थी। अकेले इन्हीं के साहित्य पर एक शोध प्रबन्ध लिखा जा सकता है । अब यहां भ० सकलकति द्वारा विरचित कुल ग्रन्थों का परिचय दिया जा रहा है। १. आदिपुराण-इस पुराण में भगवान आदिनाय, भरत, बाहुबलि, मुलोचना, जयवोत्ति आदि महापुरुषों के जीवन का विस्तृत वर्णन किया गया है । पुराए सर्गों में विभक्त है और इसमें २० सग हैं। पुराण की इलोक सं० ४६२८ श्लोक प्रमाण है | वर्णन शैली सुन्दर एवं सरस है | रचना का दूसरा नाम 'युषभ माय चरित्र भी है। २. उत्तरपुराण- इसमें २३ लीर्थकरों के जीवन का वर्णन है एवं साथ में चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण प्रादि वालाका-महापुरुषों के जीवन का भी वर्णन है । इसमें १५ अधिकार हैं। उत्तर पुराण, मारतीय ज्ञानपीठ वाराणसी की ओर से प्रकाशित हो चुका है | ३. कर्मविपाक-यह कृति संस्कृत गद्य में है। इसमें प्राउ कर्मों के तथा उनके १४८ भेदों का वर्णन है। प्रकृतिबंघ, प्रदेशबंध, स्थितिबंध एवं अनुभाग बंध
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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