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________________ राजस्थान के जैन संप्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व साधुनों का अभाव था । भट्टारकों के नग्न रहने की प्रथा थी। स्त्रय भट्टारक सकलकीति भी नग्न रहते थे। लोगों में धार्मिक श्रद्धा बहुत थी। तीर्थयात्रा बड़े २ संघों में होती थी । उनका नेतृत्व करने वाले साघु होते थे । तीर्थ यात्राएं बहुत लम्बी होती थी तथा वहीं से सकुशल लौटने पर बड़े २ इत्सव एवं समारोह किये जाते थे। भट्टारकों ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं एवं अन्य धार्मिक समारोह करने की अच्छी प्रधा डाल दी थी। इनके संघ में मुनि, आयिका, थावक प्रादि सभी होते थे । साधुओं में ज्ञान प्राप्ति की काफी अभिलाषा होती थी तथा मंघ के सभी साधुनों को पढ़ाया जाता था । ग्रन्थ रचना करने का भी खूब प्रचार हो गया था । भट्टारक मरण भी खूब ग्रन्थ रचना करते थे । वे प्रायः अपने ग्रन्थ श्रावकों के आग्रह से निबद्ध करते रहते थे । व्रत उपवास की समाप्ति पर श्रावकों द्वारा उन ग्रन्त्रों को प्रतियां विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों को मेंट स्वरूप दे दी जाती थी। मट्टारकों के साथ हस्तलिखित ग्रन्थों के अस्ते के बस्ते होते थे । समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं श्री और न उनके पढ़ने लिखने का साधन था । व्रतोद्यापन पर उनके प्राग्रह से ग्रन्यों की स्वाध्यायार्थ प्रतिलिपि कराई जाती थी और उन्हें साधु सन्तों को पढ़ने के लिए दे दिया आता था। साहित्य सेवा साहित्य सेवा में सकलगीति का जबरदस्त योग रहा । 'कभी तो ऐसा मालूम होने लगता है जैसे उन्होंने अपने साधु जीवन के प्रत्येक क्षरण का उपयोग किया हो । संस्कृत, प्राकृत एवं राजस्थानी भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था । वे सहज रूप में ही काव्य रचना करते थे इसलिये उनके मुख से जो भी वाक्य निकलता था यही काव्य रूप में परिवर्तित हो जाता था । साहित्य रचना को परम्परा सकलकीति ने ऐसी डाली कि राजस्थान के बागा एवं गुजरात प्रदेश में होने वाले अनेक साधु सन्तों ने साहित्य की दूव सेवा की तथा स्वाध्याय के प्रति जन साधारण को भावना को जाग्रत किया । इन्होंने अपने अन्तिम २२ वर्ष के जीवन में २७ से अधिक संस्कृत रचनायें एवं ८ राजस्थानी रचनायें निबद्ध की थो। 'सकलकोत्तिनु रास' में इनकी मुख्य २ रचनाओं के जो नाम गिनाये हैं वे निम्न प्रकार हैं चारि नियोग रचना करीय', गुद कवित तणु हवि सुरगहु विचार । १. यती-आचार २. थावकाचार ३. पुराग ४. आगमसार कथित अपार ।। ५. प्रादिपुराण ६. उत्तरपुराण ७. शांति ८. पास ९. व मान १०. मलि चरित्र । प्रादि ११, यशोधर १२. धन्यकुमार १३. सुकुमाल १४. सुदर्शन चरित्र पवित्र ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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