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________________ राजस्थान के जैन सत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व राज्यमती रलीयाभरणी सोहामणी सुमधुरीय वारिण । भंभर तोली भामिनी स्वामिनी सोहि सुराणी ॥२१॥ रूपि रंभा सु तिलोत्तमा उत्तम प्रगि प्राचार। परिसऊं पुण्यवती तेहनि नेह करि नेमि कुमार ॥२२॥ तब चितवि सुख दायक जग नायक जिनराय । चारित्र वरणीय कर्म मर्महनीमज आम ॥२३॥ जय जिन पाणी ग्रहण तरणी हमरगी हडि विचारि । सुर नर तव आनंदीया वंदीया जय जयकार ||२४|| तष बलदेव गोविंद नरिंद सृरिद समान । रवि विठ जगपती जब तब सहु चालिजान ||२५|| घंटा टंकार वयमटम कथा चमकथा चतुर सुजाण । देवद दामादकथा उमकथाढोल नीसरण ॥२६॥ भेरी न भेरी मह अरि झल्लरि झं झंकार । वीणा वंश वर चंग मृदंग सु दोंदों कार ॥२७|| करडका हाल कसाल सूताल विशाल विचित्र । सांगां सरण इव संख प्रमुख बहु वाजिन ॥२८॥ पाखरा तार तो खार ईसार ता नेजीरंग । मद भरि मेगल मलपता मलकाता चाला सुर्चग ||२६|| सबल संग्रामि सबुझजे भूम झालिक भूधार । धाया धार धसता हसता हाथि हथीयार ॥३०॥ समरथ रथ सेजवाला पालां नर पुह बिन माय । वाहारण विमारण सुजाण सुखासन संख्यन पाइ ॥३१॥ उध्वज ने जारा स सिरि सीस करि सोह समान । विचित्र सुछ चामर भरि अबरी छाह्यो भाण ॥३२।। सुगंध विविध पकवान भोजन पान अमीय समान । जमण जमती जाय जान सुवान वाधंती विधान ॥३३॥ मृग मद चंदन धोलत बोल सुरोल अपार । सुर तर भवर भरा केसर कपूर सार ॥३४॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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