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________________ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व हूँबड़ थी । होनहार विरवान के होत चीकने पान' कहावत के अनुसार गर्भाधारण के पश्चात् इनकी माता ने एक सुन्दर स्वप्न देखा और उसका फल पूछने पर करमसिंह ने इस प्रकार कहा - "तजि वयण सुरिगसार, सार कुमर तुम्ह होइसिइए । निर्मल गंगातीर, चंदन नंदन तुम्ह तणुए ||६|| जलनिधि गहिर गंभीर खीरोपम सोहा मणुए। ते जिहि तरण प्रकाश जग उद्योतन जस किररिंग ॥१०॥ बालक का नाम 'पूनसिंह' अथवा 'पूर्णसिंह' रखा गया। एक पट्टावलि में इनका नाम 'पद' भी दिया हुअा है। द्वितीया के चन्द्रमा के समान वह बालक दिन प्रति दिन बढ़ने लगा ! उसका वर्ण राजहंस के समान शुभ्र था तथा शरीर बत्तीस लक्षणों से युक्त था। पांच वर्ष के होने पर पूर्णसिंह को पढ़ने बैठा दिया गया। बालक कुशाग्र बुद्धि का था इसलिए शीघ्र ही उसने सभी ग्रन्थों का अध्ययन कर लिया। विद्यार्थी अवस्था में भी इनका प्रहद् भक्ति की ओर अधिक ध्यान रहता था तथा क्षमा, सत्य, शौच एवं ब्रह्मचर्य आदि वर्मा को जीवन में उतारने का प्रयास करते रहते थे। गार्हस्थ जीवन के प्रति विरक्ति देखकर माता-पिता ने उनका १४ वर्ष की अवस्था में ही विवाह कर दिया लेकिन विवाह बंधन में बांधने के पश्चात् भी उनका मन संसार में नहीं लगा और चे उदासीन रहने लगे। पुत्र की गति-विधियां देखकर माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया और कहा कि उनके पास जो अपार सम्पत्ति है, महल-मकान है, नौकर-चाकर हैं, उसके वैराग्य धारण करने के पश्चात् - वह किस काम आवेगा ? यौवनावस्था सांसरिक सुखों के भोग के लिए होती है ! संयम का तो पीछे भी पालन किया जा सकता है । पुत्र एवं मातापिता के मध्य बहुत दिनों तक वाद-विवाद चलता रहा । २ थे उन्हें साधु-जीवन की १. त्यति मांहि मुहतवंत हूंवड़ हरषि वखारिणइए। करमसिंह वित्तपन्न उदयवंत इम जाणीइए ।। ३ ।। शोभित तरस अरर्धागि, मुलि सरीस्य सुदरीय । सील स्यंगारित अङ्गि पेखु प्रत्यक्षे पुरंदरीय ।। ४ ।। -सकलकोतिरास २. देवि चंचल चित्त मात पिता कहि बछ सुरिण । ब्रह्म मंदिर बहु वित्त प्राविसिइ कारण कावण ।। २० ॥ लहुप्रा लीलावंत सुख भोगवि संसार तणाएँ । पछइ दिवस बहूत अछिइ रॉयम तप तगाए ॥ २१ !! -सकलकीतिरास
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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