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राजस्थान के बैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पन्यान्यो ध्यातमु पयउ पप्परपु दल प्रतरि । सूर हिलं गह गहहि धसहि कादर क्ति तरि । उतु दिसि सुलोमु अनु तक वैधलु परिय रिणय तरण तुलद ।। संतोषु गरुख मे रह ,सरि सुर सुकिय वरण भय लिए खला ॥८॥
गाथा
कि स्खलि है भय पवरणं, गरुवर संतोषु मेर सरि अटलं ।
चबरंगु सयम गजिवि रमिण गरिण सूर बहु जुड़ियं ।।८।। तोटक छंदु रण पगरिण जुट्टय सूर नरा ।
तहि बजहि भेरि गहीर सरा। तह बोलङ लोभु प्रचंड भडो।
हणि जाइ संतोष पयालि दलो ॥२॥ फिटु लोभ न वोसह गब्द करे ।
हुए कासुपस्या है तुम्ह सिरे: तइ मूढ सतायउ सयल जणो ।
- जहं जाहिन छोडध तथ खिरणो ।।८।। जह सोभु तहां थिरु लछि वहो ।
दरि सेवद उझाउ लोड सहो ।। जिव इट्ठिय चिसि संतोषु करि ।
ते दोसहि भिख्य भयंति परे १८४।। जह लोमु तहां कहु करय सुखो।
निसि वासुरि जीउ सहत दुखो। सयतोषु जहां तह मोति उसो ।
. पय चंदहि इद नरिंद तिसो ॥८५।। संयतोष निवारहू गट चित्त। .
हउ व्यापि रह्या जगु मंझि तिसो ॥ हउ प्रादि अनादि जुगादि जुगे
. सहि त्रीय सि बीयहि मुह्यू लगे ॥८६।।