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________________ २४४ राजस्थान के जन संत : व्यक्तित्व एव कृतित्व एड कोर्ट संतोष राना तरी । शासु पसाइ व शांति वंती महो।। सासु नै रिहि को दुदना प्रावए । । सो भडो लोभ हो जुग वायए.॥६५॥ बोहा खो जुग' वायइ लोभ कउ, ए गहहि जिस पाहि । सो संतोषु मनि संगह, कहियउ तिहुँ धरणगाहि ॥६६॥ गाथा कहियज तिह बगा गाहो, जाणहु संतोषु एहु परमाणो । मोइम चिति दिनुकर, जिउ जिसहि लोमु यह दुसहु ॥१७॥ सुरिण वीर वमणा गोइमि आणिउ, संतोषु सूर घटम: । पज्जलिज लोह तंखि खिरिण मेले घउरंगु सयमु प्रप्परषु ।।६८॥ चित्ति चमकिउ हिया श्ररहरिन । रोसा इशु तम कियउ, लेइ लहरि विषु मनिहि घोलह । रोमावलि उद्धसिम, काल रूई हुई भुवह तोलइ॥ दावानल जिउ पज्वलिउ नयनि लायि बाडि । आज संतोषह खिज करउ जड मूल हं उम्पाहि ॥६६॥ दोहा लोभिहि कीयउ सोचाउ हवउ प्रारति ध्यानु । प्राइ मिल्पा सिरु नाश करि, भूख सयलु परषानु ॥७॥ षटप प्रायज' झूठु पचानु मंतु तंत खिरिश कीयउ । मनु कोहुँ अरु दोह मोह इक यह थीम उ ।। .. माया फल हि कलेसु यापु संतापु छदम दुख । कम्म मिथ्या प्रासरउ प्रार प्रद्धाम्मि कियज पक्ष ।। कुविसभु कुसोलु कुमतु जुडित, रागि दोषि आइरू लहिउ । अप्पणज सयनु वसु देखि करि, लोहुराउ सब गहगहिउ ॥७१।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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