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ब्रह्म जिनदास ( समय १४४५ - १५१५ ) सम्यक्त्व - मिथ्यात्वरास '
ॐ नमः सिद्ध ेभ्यः
[ १ ] ढाल वीनतीनी
सरसति स्वामिरिण जीनवड मांगू एक पसाउ । तह परसादेइ गाइस्यु रुवडो जिरावर राउ ।। १ ।। सहीए समाणीए तम्हे सुखो सुरगड अम्हारीए बात । जिण चैत्यालइ जाइस्यु छांड़ि घरकीय तात ॥२॥ ग पखाली आपणो, पहिरो निरमल चीर । जिन चेत्याह पंसतां निरमल होइ सरीर ||३|| जिरावर स्वामिह पूंजी बांदी सह रुपाय | तत्व पदारथ सांभलि निरमल कीजिए काय ||४||
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सहगुरु स्वामि तम्हे कह, श्रावक धर्म वीचार | उतीम धरम जगि जारिए उतीम कुलि अवतार ॥१५॥ सहगुरूस्वामिय बोलीया मधुरीय सुललीत बाणि । श्रावक धरम सुणी निरमलो जीम होइ सुखनीय लाश ॥६॥
समिति निरमल पालीए, टालि मिश्रातह कंद | जिवर स्वामिय व्याइए, जैसो पूनिम चंद ॥७॥
वस्त्राभरण थाए वेगला जयमालि करी नवि होइ । नारी ग्रायुध थका वेगला, जिन तोलें अवर न वोइ ||८|| सोम मूरति रलीयावरणा बीकार एक न अगि । दीसंता सोहावरणा, ते पूजी मनरगि॥६॥
इन्द्र नरेन्द्र पुजीया न जिरावर भुमति दातार । निरदोष देव एह्वा घ्याइये, जोम रामो भवपार ॥१०॥
अवर देव नवी मानी दुखरा सहीन वीचार | मोहि कमि जे मोहीया ते अजू भमिसो संसारि ॥११॥
१. ब्राजिनवास कृत विशेष परिचय बेखिये पृष्ठ संस्था ३८-३९ तक
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