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________________ भवशिष्ट संत १८. कल्याण कीर्ति ___ कल्याणकोत्ति १७ वीं शताब्दी के प्रमुख जैन सन्त देवकीति मुनि के शिष्य थे । कल्यागाक्रीति भीलोहा ग्राम के निवासी थे । वहां एक विशाल जैन मन्दिर था । जिसके ५२ शिखर थे और उन पर स्वर्ण कलश सुशोभित थे । मन्दिर के प्रांगण में एक विशाल मानस्तंभ था । इसी मन्दिर में बैठकर कवि ने चारुदत्त प्रबन्ध की रचना की थी। रचना संवत् १६९२ मासोज शुक्ला पंचमी को समाप्त हुई थी। कथि ने उक्त वर्णन निम्न प्रकार किया है। चारुदत राजानि पुत्यि भट्टारक सूखकर सुखफ र सोमागि अति विचक्षा । वादिवारसा केशरी भट्टारक श्री पदमनं दि चरण रज सेवि हारि ।।१०।। ए सह रे गळ नायक प्रणमि करि, देवनी गति मुनि निज गुरु मन्य धरी । धरि चित्त चरणे नम कल्याण कीरति' इम भरिण। चारूदत्त कमर प्रबध रचना रचिमि आदर घणि ॥११॥ राय देश मध्यि रे जिलोउ उ वाँस, निज रचनांसि रे हरिपुरिनि हमी। हा अमर कुमारनि, तिहां धनपति वित्त विलसए । प्राशाद प्रतिमा जिन मति करि सुकृत सांचए ।।१२।। सुकृत संचिरे यत बहु माचार, दान महोछव रे जिन पूजा करि । करि उछव' गान गंनव चंद्र जिन प्रसादए । बावन सिखर सोहागणी ध्वज कनक कलश विमालए ॥१३॥ मंडप मधिरे समवसरणा सोहि, श्री जिनविद रे मनोहर मन मोहि । मोहि जन मन प्रति उन्नत मानस्थं विसालाए । तिहां विजय विख्यात सुन्वर जिन सासन रक्ष पायलये ॥१४॥ तिहां चोमासिके रचना करि सोलवाणुगिरे :१६१२: आसो अनुसरि । अनुसरि आसो शुक्ल पंचमी श्री गुरुचरण हृदयधरि । कल्याणको रति कहि सज्जन भरको मुणो आदर करि ।।१५।। ब्रहा आदर ब्रह्म संधजीतणि विनयसहित सुखकार । ते देखि चारूदत्तनो प्रबंध रच्यो मनोहर ॥१॥ कवि ने रचना का नाम 'चारूदत्तराम' भी दिया है। इसको एक प्रति
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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