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________________ १t राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व रास हंस तिलका एह, जो भावद द चित्त रे हंसा । श्री विद्यानंदि उपदेसिज, बोलि ब्रह्म प्रजित रे हंसा ।।३७|| हंसा तू करि संयम, जम न पडि संसार रे हंसा ।। ब्रह्म अजित १५ वो शताब्दि के विद्वान् सन्त थे । १७, आचार्य नरेन्द्रकीर्ति ये १७ वीं शताब्दि के सन्त थे। भबादिभूषण एवं भ. सकलभूषण दोनों ही सन्तों के ये शिष्य थे और दोनों को ही इन पर विदोष कृपा थी। एक बार वादिभूषण के ग्यि शिष्य ब्रह्म नेमिदास ने जब इनसे 'सगाप्रबन्ध' लिखने की प्रार्थना की तो इन्होंने उनकी इच्छानुसार 'सगर प्रबन्ध' कृति को निबद्ध किया । प्रबन्ध का रचनाकाल सं० १६४६ पासोज सुदी दशमी है। सह कवि की एक प्रच्छी रचना है। प्राचार्य नरेन्द्र कीत्ति की ही दूसरी रचना 'तीर्थकर चीनीमना छप्पय' है। इस में कवि ने अपने नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई परिचय नहीं दिया है। दोनों ही कृतियां उदयपुर के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। --- --- ranMwu-.-- गोलगार अशे नप्ति दिनमणि बोरसिंहो विपश्विस । भार्या पीया प्रतीता तनुविदितो ब्रह्म दोकाभितोऽभूत ।। २. भट्टारक विद्यामन्दि बलात्कारगणसूरत शाखा के भट्टारक थे । भट्टारक सम्प्रदाय पर सं० १९४ तेह भवन मोहि रहा चौमास, महा महोत्सव पूर्ण अस | श्री बाविभूषण देशनां सुधा पान, कीरति आभमना ।।१६।। शिष्य ब्रह्म नेमिदासज राणी, विनय प्रार्थना देखी घणो । सूरि नरेन्द्र कीरति शुभ रूप, सागर प्रवन्ध रचि रस कप |॥२०॥ मलसंघ मंडन मुनिराध, फलिफालि ले गणधर पाय ! मुमतिफोरति गछपति अवधीत,, तस गुरू बोधव जग विख्यात ।।२१॥ सकलभूषण सूरीदपर बेह, कलि माहि जंगम तीरथ तेह । ते चोए गुरू पद कंज मन धरि, नरेन्द्रकीरति शुभ रचना करी ॥२२॥ संदत सोलाछितालि सार, आसोज सुदि दशमी बुधव र । संगर प्रवन्ध रच्यो मनरंग, घिस नको का सायर गंग ।।२।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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