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________________ राजस्थान के जन संत : व्यक्तित्व एवं तिर ऊजल पूनिम चंद्र सम, 'जस राजीमती जामि होई। ऊजलु सोहई अबला, रूप रामा जोह। . मजल मुखवर भामिनी, साये मुख तंबोल । .. उजल केवल न्यान जानू, जीव भव कलोल ।। कजलु रुपानु भल्लु, कटि सूत्र राजुल धार । अल दर्शन पालती, दुख नास जय सुखकार । ने मिवंदना समय—सुमतिसागर ने अभयनन्दि एवं रत्नकीति दोनों का शासन काल देखा था इसलिये इनका समय संभवत; १६०० मे. १६६५ तक होना चाहिए । १२. ब्रह्म गणेश गणेश ने तीन सन्तों का म० रत्ननीति, में कुमुदचन्द य भ० अभयं चन्द का शासनकाल देखा था। ये तीनों ही भट्टारकों के प्रिय शिष्य थे इसलिये इन्होंने भी इन भट्टारकों के स्तवन के रूप में पर्याप्त गीत लिखे हैं। वास्तव में ब्रह्म गणेश जैसे साहित्यिकों ने इतिहास को नया मोड दिया और उनमें अपने गुरुजनों का परिचय प्रस्तुत करके एक बड़ी भारी कमी को पूरा किया। बं गणेश के अब तक करीब २० गीत एवं पद प्राप्त हो चुके हैं और सभी पद एवं गीत इन्हीं सन्तों की प्रशसा में लिखे गये हैं। दो पद 'तेजाबाई की प्रशंसा में भी लि.ग । तेजाबाई उस समय की अच्छी श्राविका थी तथा इन सन्तों को संघ निकालने में वि. सहायता देती थी। १३. संयमसागर मे भट्टारक कुमुदचन्द्र के शिष्य थे । ये ब्रह्मचारी थे और अपने गुर. को साहित्य निर्माण में योग दिया करते थे । ये स्वयं भी कषि थे । इनके अब तक कितने ही पद एवं गीत उपलब्ध हो चुके हैं। इनमें नेमिगीत, पीतलनाथगीत, गृणावलि गीत के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। अपने अन्य साथियों के समान इन्होंने भी कुमुदचन्द्र के स्तवन एवं प्रशंसा के रुप में गीत एवं पद लिखे हैं। ये सभी गीत एवं पद इतिहास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। १. भ. कुमुबचन्द्र गीत २. पद (प्रायो साहेलडीरे सह मिलि संगे) ३. , (सकल जिन प्रणामी मारती समरी)
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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