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________________ राजस्थान के जंन सत व्यक्तित्व एवं कृतित् २.८८ ७. ब्रह्म जीवन्धर ब्रह्मजीवंबर भ० सोमकीत्ति के प्रशिष्य एवं भ० यशःकीति के शिष्य थे। सोमकीत्ति का परिचय पूर्व पृष्ठों में दिया जा चुका है। इसके अनुसार ब्र० जीवंधर का समय १६ वीं शताब्दि होना चाहिए। अभी तक इसकी एक 'ठाणा वेलि' कृति ही प्राप्त हो सकी है अन्य रचनाओं की खोज की अत्यधिक आवश्यकता है । गुठारणा वेलि में २८ छन्द है जिसका अन्तिम चरण निम्न प्रकार है । चौदि गुणठाणां सुण्या जे मध्धा श्रीजितराह जी, सुरनर विद्याधर सभा पूजीय वदीय पाय जी । पाय पूजी मनहर जी भरत राजा संच, प्रयोध्यापुरी राज करवा सयल सज्जन परव । विद्या गणवर उदय भूधर नित्य प्रकटन भास्कर, भट्टारक यशकीरति सेवक भणिय पर ॥२२॥ वेलि की भाषा राजस्थानी है तथा इसकी एक प्रति महावीर भवन जयपुर के संग्रह में है । ८. धर्मं रुचि 1 भ० लक्ष्मीचन्द्र की परम्परा मे दो श्रभयचन्द्र भट्टारक हुए एक अभयचन्द्र (सं० १५४८) श्रभयनन्द के गुरु थे तथा दूसरे अभयचन्द्र न० कुमुदचन्द्र के शिष्य थे। दूसरे प्रभयचन्द्र का पूर्व पृष्ठों में परिचय दिया जा चुका है किन्तु ब्रह्म धर्मरुचि प्रथम अभयचन्द्र के शिष्य थे। जिनका समय १६ वीं शताब्दि का दूसरा 'चरण था | इसकी ब तक ६ कृतियां उपलब्ध हो चुकी हैं जिनमें सुकुमालस्वामीनी रास" सबसे बड़ी रचना है। इसमें विभिन्न छन्दों में सुकुमाल स्वामी का चरित्र ति है । यह एक प्रबन्ध काव्य है । यद्यपि काव्य सर्गों में विभक्त नहीं है लेकिन विभिन्न भात छन्दों में विभक्त होने के कारण सर्गों में विभक्त नहीं होना खटकता नहीं है। रास की भाषा एवं वर्णन शैली अच्छी है । भाषा को दृष्टि में रचना गुजराती प्रभावित राजस्थानी भाषा में निबद्ध है । ते देखो भवमीत हवी नागभी कहे तात कव पातिग एणे कीया, परिपरि पामंद छे घात । *********** १. रास को एक प्रति महावीर भवन जयपुर के संग्रह में है ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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