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________________ अवशिष्ट संत १८७ एवं निवारण इन सभी घटनाओं का कवि ने साक्षप्त परिचय दिया है । रास की भाषा राजस्थानी है जिस पर गुजराती का प्रभाव झलकता है। रास एक प्रबन्ध काव्य है लेकिन इसमें काव्यत्व के इतने दर्शन नहीं होते जितने जीवन की घटनामों के होते हैं, इसलिये इसे कथा कृति का नाम भी दिया जा सकता है। इसकी एक प्रति जयपुर के दि० जैन बड़ा माँदर तेहरपंथी के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। प्रति में १०१"x४" प्राकार पाले ११ पत्र हैं । यह प्रति संवत् १६१३ पोप सुदि १५ की लिखी हुई है । . ध का आदि अन्त भाग निम्न प्रकार है: आदि भाग सारद सामिशि मांगु माने, तुझ चालणं चित लागू व्याने । अविरल प्रक्षर आलु दाने, मुझ मुरम्य मनि अविशांत रे। गाउं राजा रलीयामा रे, यादवना कुल मंइणसार रे । नामि नेमीश्वर जाणि ज्यो रे, तसु गुण पुहुवि न लाभि पार रे । राजमती वर रुयन रे, नवह भवंतर मगीय भूतरे । दशमि दुरधर तप लीड रे, पाठ कर्म चउमी आणु अत रे ॥ अन्तिम भाग श्री यशकिरति सूरीन सूरीश्वर कहीइ, महीपलि महिमा पार न लही रे । तात रूपवर रसि नित वाणी, सरप्स सकोमल अमोय सयासी रे । तास चलणं चित लाइउ रे, गाइउ राइ अपूरव रास रे। जिनसेन युगति करी दे, तेह ना वयरण तणउ वली वास रे ॥२१॥ जा लगि जलनिधि नसिनी रे, बा लगि अचल मेरि गिरि धी रे । जा गया मरिण चंदनि सुर, ता लगि रास रहू भर करि रे । प्रगति सहित यादव तण रे, माव सहित भासि नर नारि । तेहनि प्राय होसि घणो रे, पाप तरण करसि परिहार रे ॥९२।। चंद्र वास संबच्छर कोषि, गंधाण पुण्य पासि दीजि । माघ सुदि पंचमी भणी जि, गुरुवारि सिद्ध योग ठवीजिरे । जावा नयर अगि जाशीइ रे, तीर्थकर बली कहीं सार रे। शांतिनाथ तिहाँ सोलमुरे; कस्यु. राम तेह भरण मझार रे ।।९३।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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