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________________ ( द ) आमार सर्वे प्रथम में वर्तमान जैन सन्त पूज्य मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज का प्रत्यधिक आभारी हूं जिन्होंने पुस्तक पर आशीर्वाद के रूप में अपना श्रभिमत लिखने की कृपा की है । यह कृति श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के साहित्य शोध विभाग का प्रकाशन है इसके लिये मैं क्षेत्र प्रबन्ध कारिणी कमेटी के सभी माननीय सदस्यों तथा विशेषतः सभापति डा० राजमलजी कासलीवाल एवं मंत्री श्री गंदीलालजी साह एडवोकेट का आभारी हूं जिनके सद् प्रयत्नों से क्षेत्र की ओर से प्राचीन साहित्य के खोज एवं उसके प्रकाशन जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित हो रहा है । वास्तव में क्षेत्र कमेटी ने समाज को इस दिशा में अपना नेतृत्व प्रदान किया है । पुस्तक की भूमिका श्रावरणीय डा० सत्येन्द्र जो अध्यक्ष हिन्दी विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय में लिखने की महती कृपा की है। डॉक्टर साहब का मुझे काफी समय से पर्याप्त स्नेह एवं साहित्यिक कार्यों में निर्देशन मिलता रहता है इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूं में मेरे सहयोगी श्री मी पूर्ण आभारी हूं जिन्होंने पुस्तक को तैयार करने में है । मैं श्री प्रेमचन्द रोवका का भी आभारी हूं जिन्होंने इसकी अनुक्रम रिकार्य t अनुपचन्द जी न्यायतीर्थं फा अपना पूर्ण सहयोग दिया तैयार की हैं। दिनांक १-६-६:५ डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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