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________________ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व party ( जयपुर ) ग्राम में बिहार लिया। उस अवसर पर यहां के एक श्रावक हरनाम ने सोलह कारण व्रतोद्यापन के समय मट्टारक सोममेन कृत रामपुराण ग्रंथ की प्रति इनके शिष्धं शुभचंद्र को भेंट दी थी, इसी तरह एक अन्य अवसर पर संवत् १७४५ में श्रावकों ने मिल कर इनके शिष्य नाथूराम की सकलभूषण के उपदेश रत्न माला को प्रति भेंट की थी । १७२ इनका एक शिष्य नेमिचन्द्र अच्छा विद्वान् या उसने संवत् १७६९ में हरिवंशपुराण की रचना समाप्त की थी। इसकी ग्रंथ प्रशस्ति में भट्टारक जगत कीर्ति की प्रशंसा में काव ने निम्न छन्द लिखा है भट्टारक सत्र उपर जगतकोरती जगत जोति भारत । कोरति बहु दिसि बिस्तरी, पांच प्राचार पा सुभ सारतो t प्रमत्त में जीत नहीं, चहु दिसि में ताकी प्राणती । खिमा खडग स्याँ जीतिया चोराणने पटनायक मारतो ॥२०॥ पूर्व भट्टारकों के समान इन्होंने भी कितनी ही प्रतिष्ठानों में भाग लिया। संवर् २०१ में नरवर में हो। इसी गढ़ (टोडारायसिंह) में भी प्रतिष्ठा महोत्सब सम्पन्न हुमा । संवत् १९४६ में चांदखेडी में जो विशाल प्रतिष्ठा हुई उसका सचालन इन्हीं के द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस प्रतिष्ठा समारोह में हजारों मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई थी और आज वे राजस्थान के विभिन्न मन्दिरों में उपलब्ध होती हैं । इस प्रकार संवत् १७७० तक भट्टारक जगतकीति ने जो साहित्य एवं संस्कृति की जो साधना को वह चिरस्मरणीय रहेगी ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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