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________________ १६. राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व कवि का समय यदि संवत् १६०० से १६६० तक मान लिया जावे तो कोई भश्चार्य नहीं होगा। अन्य कृतियां : जयकुमाराख्यान एवं सोलह कारण रास के अलावा अन्य सभी रचतार लघु रचनाए हैं। किन्तु भाव एवं भाषा की दृष्टि से वे सभी उल्लेखनीय हैं। कवि का एक पद देखिए : राग प्रभाति : जागता जिनवर जे दिन निरस्यो, धन्य ते दिवस चिन्तामणि सरिलो। सुप्रभाति मुख कमल जु दी, वचन अमृत थकी अधिकजु मीठु ।।१।। सफल जनम हवो जिनधर दीठा, करण सफल सुण्या तुम्ह गुण मीठा ॥२॥ धन्य ते जे जिनवर पद पूजे, श्री जिन'तुम्ह बिन देव न दूजो ॥1॥ स्वर्ग मुगति जिन दरस नि पामे, 'पन्द्रको रति सूरि सीसज नामे ।।४।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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