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________________ १५० मदन माहामद मीठे ए मुनिवर, गोयम सम गुणधारी । क्षमावि गंभिर विचक्षण, गरुयो गुण भण्डारो ॥ चन्द्र०॥२॥ राजस्थान के जैन तंत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व निखिलकला विधि विमन विद्या निधि विकटवादी हठहारी । रम्य रूप रंजित नर नायक, सज्जन जन सुखकारी ॥ चन्द्र०||३|| सरसति गछ श्रृंगार शिरोमणी, मूल संघ मनोहारी ॥ कुमुदचन्द्र पदकमल दिवाकर, 'श्रीपाल' तुम बलीहारी || चन्द्र० ||४|| 'गणेश' भी अच्छे कवि थे। इनके कितने ही पद, स्तवन एवं लघु कृतियां उपलब्ध हो चुकी हैं। 'भ० अभयचन्द्र' के आगमन पर कवि ने जो स्वागत गान लिखा या थोर जो उस समय संभवतः गाया भी गया था, उसे पाठकों के श्रवलोकनार्थ यहां दिया जा रहा है - बाजु भले आये जन दिन घन रमणी । शिवया नंदन बंधी रत तुम, कनक कुसुम बचाको मृगनयनी ॥१॥ उज्जल गिरि पाय पूजी परमगुरु सकल संघ सहित संग सथनी । मृदंग बजावते गावते गुनगनी, अभवचन्द्र पदधर थायो गजगयनी ॥२॥ अब तुम आये भली करी, घरी घरी जय शब्द भविक सब कहेनी । ज्यों चकोरी चन्द्र क्रु इयत, कहत गणेश विशेषकर वयनी ||३|| — इसी तरह कवि के एक और शिष्य 'दामोदर' ने भी अपने गुरु की भूरि २ प्रशंसा की है। गीत में कवि के माता-पिता के नाम का भी उल्लेख किया है तथा लिखा है कि 'भ० अभयचन्द्र ने कितने ही शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त की थी। पूरा गीत निम्न प्रकार है यांदी वांदो तखी री श्री अमयचन्द्र गोर वांदो । मूल संग मंडण दृरित निकंदन, कुमुदचन्द्र पगी बंदी ॥ १ ॥ शास्त्र सिद्धान्त पूरण ए जाए, प्रतिबोवै भवियण अनेक । सकल कला करो विश्वने रंजे, मंजे वादि अनेक ||२|| हूं बड़ वंश विख्यात वसुधा श्रीपाल साधन तात । आयो जननीं पतिय शवन्तो कोड़मदे धन मात ॥३॥ रतनचन्द पाटि कुमुदचन्दयति, प्रमे पूजो पाय ! तास पाटि श्री अभयचन्द्र गोर 'दामोदर' नित्य गुरणाम ||४||
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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