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________________ १३४ राजस्थान के जैन संत ; व्यक्तित्व एवं कृतित्व भक्ति में अधिक रुचि रखते थे इसलिए उन्होंने अपनी अधिकांश कृतियां इन्हीं दो पर प्राधारित करके लिखी। नेमिनाथ गीत एवं नेमिनाथ बारहमासा के अतिरक्त अपने हिन्दी पदों में राजुल नेचि के सम्बन्ध को अत्याधिक भावपूर्ण भाषा में उपस्थित किया । सर्व प्रथम इन्होंने राजुल को एक नारी के रूप में प्रस्तुत किया । विवाह होने के पूर्व की नारी दशा को एवं तोरणद्वार से लौट जाने पर नारी हृदय को खोलकर अपने पदों में रख दिया । वास्तव में यदि रत्न कीत्ति के इन पदों का गहरा अध्ययन किया जाये तो कवि की कृतियों में हमें कितने ही नये चरणों की स्थापना मिलेगी। विवाह के पूर्व राजुल अपने पूरे गार के साथ पति की बारात देखने के लिए महल की छत पर सहेलियों के साथ उपस्थित होती है इसके पश्चात पति के प्रकस्मात वैराग्य धारण कर लेने के समाचारों से उसका शृगार वियोग में परिणत हो जाता है दोनों ही वर्सनों को कवि ने अपने पदी में उत्तम रीति में प्रस्तुत किया है। भ० रत्मकीत्ति की सभी रचनायें भाषा, "माव एवं शैली "सभी दृष्टियों से अच्छी रचनायें हैं। कवि हिन्दी के जबरदस्त प्रचारक थे। संस्कृत के ऊचे विद्वान् होने पर भी उन्होंने हिन्दी भाषा को ही अधिक प्रश्रय दिया और अपनी कृतियाँ इसी भाषा में लिखी। उन्होंने राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात में भी हिन्दी रखनानों का हो प्रचार किया और इस तरह हिन्दी प्रेमी कहलाने में अपना गौरव समझा। यही नहीं रत्नकीत्ति के सभी शिष्य शिष्यों ने इस भाषा में लिखने का उपक्रम जारी रखा मोर हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना पूर्ण योग दिया।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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