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________________ भट्टारक रत्नाकीत १३१ पिता, सखियां एवं रात्रि सभी दुःख उत्पन्न करने वाली हैं इन्हीं शवों को रत्नफीति के एक पद में देखिये स्खलि ! को मिलावे नेम नरिक्षा। ता विन तन मन यौवा रजत है, चारु चंदन अरु चंदा ।।१।। सतिः । कानन भुवन मेरे जीया लागन, दुःसह मदन को फंदा । नाज मात अरु सजनी रजनी, वे अति दुःख को बंदा ॥२॥ सखि०1 तुम तो शंकर सुख के दाता, करम अति कार मंदा । रतनकीरति प्रभु परम दयालु, सेनत अमर नरिदा ॥३॥ सखि०॥ अन्य रचनाएं __ इनकी अन्य रचनाओं में नेमिनाथ फाग एवं नेमिनाथ बारहमासा के नाम उल्लेखनीय है । नेमिनाथ फाग में ५७ पद्य हैं। इसकी रचना हांसोट नगर में हुई थी। फाग में नेमिनाथ एवं राजुल के विवाह.. पशुओं की पुकार सुनकर विवाह किये बिना ही बैराग्य धारण कर लेना और अन्त में . तपस्या करके मोक्ष जाने की अति संक्षिप्त कथा ही हुई है। राजुल को सुन्दरता का वर्णन करते हुये कवि ने लिखा है। चन्द्रवदनी मुगलोचनी, मोचनी संजन मीन । शासग जीत्यो वेणिई, थेरिणय मधुकर दीन । युगल गल दाये शशि, उपमा माया कोर। प्रधर विद्रम सम उपता, दंतन निर्मल नीर । चिबुक कमल पर षट पद, आनंष करे सुधापान । ग्रीवा सुन्दर सोमती, कंबु कपोतने वान ।।१२।। नेमिबारहमासा इनकी दूसरी बड़ी रचना है। इसमें १२ त्रोटक छन्द हैं। कवि ने इसे अपने जन्म स्थान घोघा नगर में चैत्यालय में लिखी थी। रचनाकाल का उल्लेख नहीं दिया गया है। इसमें राजुल एवं नेमि के १२ महिने किस प्रकार व्यतीत होते हैं यहीं वर्णन करना रचना का मुख्य उद्देश्य है। अब तक कवि की ६ रचनायें एवं ३८ पदों की खोज की जा चुकी है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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