SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८: राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतिरवः विजयकीति छन्द तो कवि की उस समय की रचनायें मालूम पड़ती हैं जब विजय कीर्ति का यश उत्कर्ष पर था । .5 इस प्रकार भट्टारक शुभचन्द्र १६-१७ वीं शताब्दी के महान साहित्य सेवी. थे जिनकी कीति एवं प्रशंसा में जितना भी कहा जाये वही अल्प होगा। वे साहित्य के कल्पवृक्षर थे जिससे जिसने जिस प्रकार का साहित्य मांगा वही उसे मिल गया वे सरल स्वभावी एवं व्युत्पन्नमति सन्त थे । भक्त जनों के सिर उनके पास जाते ही स्वतः ही श्रद्धा ने झुक जाते थे। सकलकोत्ति के सम्प्रदाय के भट्टारकों में इतना अधिक साहित्यकट्टा भी नहीं हुए। कानेक विहार करते तो सरस्वती स्वयं उन पर पुष्प बरती थी । भाषण करते समय ऐसा प्रतीत होता. था मानों दूसरे गरणुधर ही बोल रहे हों। सब यहां उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों का सामान्य परिचय दिया जा रहा है | I 1.ý " १. करकण्डु चरित्र करकण्डु राजा का जीवन इस काव्य की मुख्य कथा वस्तु है यह एक प्रबन्ध काव्य है जिसमें १५ सगं । इसकी रचना संवत् १९६११५ में जवापुर में समाप्त हुई थी। उस नगर के आदिनाथ चैत्यालय में कवि ने इसको रचना को । सकलभूषण जो इस रचना में सहायक के शुभद्र के प्रमुख शिष्य थे. और उनको मृत्यु के पश्चात् सकलभूषण को हो भट्टारक पद पर सुशोभित कियह गया था । रचना पठनीय एवं सुन्दर है । 'चरित्र' की अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार है-: " 14। श्री मूलचे कृति नंदिसं गच्छे बलात्कार इदं चरित्रं । पूजाफलेद्ध' करकुण्डराज्ञो मट्टारक श्रीशुभचन्द्रसूरिः ॥५४॥३ ब्लाष्टे विकमतः शते समहते दशादाधिके भाद्र मासि समुज्वले युगतिथी खङ्ग जाबापुरे । श्रीमच्छीवृषभेष्वरस्य सिने करि विद 1 SPA 15 राज : श्रीशुभचन्द्रसूरी यत्तिपश्चाधिपस्यादव ॥९५॥ श्रीमत्सकलभूर्येण पुराणे पाण्डवे कृतं । साह्रायं येन तेनाऽश्रु तदाकारिस्वसिद्धये ॥५६॥ 1 P 75 २. अध्यात्मतरंगारे As उत्कृष्ट ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द का समयसार अध्यात्म विषय का माना जाता है । जिस पर संस्कृत एवं हिन्दी में कितनी ही टीकाएं उपलब्ध होती | अध्यात्मतरंगिणी संवत् १५७३ की रचना है जो माचार्य अमृतचंद्र के समयसार के कलशों पर आधारित है । यह रचना कवि की प्रारम्भिक रचनाओ 12
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy