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________________ संत कवि यशोवर ....... ... पकवान नीजि नित नबोरे, मांडी मुरकी सेव। .... । खाजा खाजड़ली दही थरारे, रेफे घेवर हेव ॥२५॥ मोतीया लालू मूग तणा रे, सेवइया अतिसार । काकरीय पड सूचीयारे, माकिरि मिश्रित सार ॥२६॥ सालीया तंदुल सपडारे, उज्जल प्रखंड अपार । मूग मंडोरा प्रति भला रे, घृत प्रसंडी धार ॥२७॥ राजुल का सौन्दर्य प्रघणनीय था। पांचों के नूपुर मधुर शब्द कर रहे थे वे ऐसे लगते थे मानों नेमिनाथ को ही बुलारहे हों । करि पर मुशोभित 'क्रनकती' चमक रही थी। गुलियों में रलजटित अंगूठो, हाथों में रहनों की ही चूड़ियां तथा गले में नवलख हार सुशोभित था । कानों में झूमके लटक रहे थे । नयन कजसरे थे । हीरों से जड़ी हुई ललाट पर राखड़ी (नोरला) चमक रही थी। इसकी वेणी दण्ड उतार (ऊपर से मोटी तथा नीचे से पतली) थी इन सब आभूषणों से यह ऐसी लगती थी कि मानों कहीं कामदेव के धनुष को तोड़ने जा रही हो . पायेय नेउर रणचारिणरे, घूघरी नु धमकार । कटिर्यत्र सोहि रुडी मेखला रे भूमणु झलक सार। रत्नजड़ित रूड़ी मुद्रकारे, करियस चहीतार । वाहि बिठा रूड़ा बहिरसा रे, हपिडोलि नवलखहार ।। कोटिय' टोडर स्यड्ड रे, श्रघणे झवकि माल । नामविट टीलु तप तपि रे, खोटलि खटकि चालि ।। बांकीय भमरि सोहामणी रे, नमले काजल रेह । कामिधनु जाणे सोडीउरे, नर मग पाडवा एह ।। ४६ ॥ हीरे जड़ी रूही राखड़ी, घेणी दंड उतार। . मयरिण पन्नग जाण पासीउरे, गोफणु लहि किसार ।। - नेीकुमार ९ खण के रथ में विराजमान पे जो रत्न जड़ित था तथा जिसमें हाँसना; जाति के घोड़े जुते हुये थे । नेमिकुमार के कानों में कुम्हन एवं मस्तक पर छत्र सुशोभित थे । वे श्याम वर्ण के थे तथा राजुल की सहेलियां उनकी ओर संकेत करके कह रही थी याही उसके पति हैं ? नबखरणु रथ सोवरणमि रे, रयण मंडित सुविसाल । हांसना प्रश्व जिरिए जोतस्यां रे, लह लहघि जाप अपार ॥ ५१ ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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