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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सोमकीति संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे विद्वान थे जिनका हम पहिले परिचय दे चुके हैं। इसलिये उनसे भी इन्हें काव्य-रचना में प्रेरणा मिली होगी । इसके अतिरिक्त म. विनय एवं पशनमा २: इ प्पर पोत्साहन मिला था। इन्होंने स्वयं बलिभद्र चौपई (सन् १५२८) में मा विजयसेन का तथा नेमिनाथ गीत एवं अन्य गीतों में भ. यशकोत्ति का उल्लेख किया है। इसी तरह भ० शामभूषण के शिष्य भ. विजयकीति का भी इन पर बरद हस्त घा । ये नेमिनाथ के जीवन से संभवतः अधिक प्रभावित थे । अतः इन्हं ने नेमिराजुल पर अधिक साहित्य लिखा है। इसके अतिरिक्त ये साधु होने पर भी रसिक श्रे और विरह शृंगार आदि की रचनाओं में रुचि रखते थे ।
ब्रह्म यशोधर का जन्म कब और कहां हुआ तथा कितनी आयु के पश्चात उनका स्वर्गवास हुआ हमें इस सम्बन्ध में अभी तक कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी । सोमवोत्ति का भट्टारक काल सं० १५२६ से १५४० तक का माना जाता है। यदि यह सही है कि इन्हें सोमकोत्ति केचरणों में रहने का अवसर मिला था तो फिर इनका जन्म संवत् १५२० के आस पास होना चाहिये । अभी तक इनकी जितनी रचनायें मिली है उनमें से केवल दो रचनामों में इनका रचना काल दिया हुआ है । जो संवत् १५८१ (सन १५२४) तथा संवत् १५८५ ( सन् १५२८ ) है । अन्य रचनात्रों में केवल इनके नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य विवरण नहीं मिलता । जिस गुटके में इनकी रचनाओं का संग्रह है वह स्वयं इन्हीं के द्वारा लिखा गया है तथा उसका लेखनकाल संवत् १५८५ जेष्ठ सुदी १२ रविवार का है। इसके
श्री रामसेन अनुकमि हुआ, यसफोरति गुरु जाणि । श्री विजयसेन पठि यापीया, महिमा मेर समाण ॥१८६॥ सास सिष्य इम उर्चार, ब्रह्म यशोधर नेह । भूमंडलि वणी पर तपि, तारह रास चिर एह ॥१८७॥
श्री यसकीरति सुपसालि, ब्रह्म यशोधर भणिसार । चलण न छोड स्वामी, सह्म तणां मुन्न भवचर्चा दुःख निवार ॥६८॥
क
बाग वाणी वर मांगु मात दि, मुप्त अविरल वाणी रे । यसकोरति गुरु गांउ गिरिया, महिमा मेर समाणी रे ॥
आधु आयु रे भवीयण मनि रलि रे ॥ देखिये भट्टारक सम्प्रदाय-पृष्ठ संख्या-२९८