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কৰিয়াৰ अनेक ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं और कुछ-एक आज भी जपलव्य है । असे कि जिनसेनके आदिपुराण आदि, धरसेनके पखंडागमसिद्धान्त आदि । समके शिष्यों द्वारा अर्थात् श्रीकुन्दकुन्दधारा प्रश्चनसार, समयसार,पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाड़ आदि अनेक अध्यात्मग्रन्थ रचे गये हैं जिनकी सारभूत-निष्कर्ष निकालने वाली टीकाएं हमारे पूज्यश्री अमृताचार्य महाराजने की है, उन्हींका रहस्य लेकर उन्हींकी यह 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' नामक अपूर्व रत्नत्रयप्रतिपादक ग्रन्थ एक मौलिक रचना है और भी अनेक ग्रन्थ आपने लिखे हैं। इन महाराजके गुरु श्रीमाधषचन्द्र धिचदेव है, जो प्रायः दसकी शताब्दी ( विक्रमकी के महान विद्वान है।
इसी तरह श्रीधरसेनाचार्यके शिष्य पुष्पदन्त-भूतबलिद्वारा रचे गये पखंडागम नामक सिद्धान्तग्रन्थकी टीका पुज्य श्रीवीरसेन महाराजने अन्सस्तत्त्व निकालकर की है, जिनके नाम पवल, जयश्चल, महाधवल रखे हैं और वर्तमान में जिनका पर्याप्त पठन-पाठन एवं स्वाध्याय चल रहा है, जैसाकि समयसार आदिका पठन-पाठन-स्वाध्याय अत्यधिकमात्रामें चल रहा है । बड़े ही उल्लास । हर्ष की बात है कि जिस प्रकार पूज्यतम महावीर भगवान के शिभ्य इन्द्रभूति नामक प्रधान गणधरने, भगवान को दिव्यध्वनि साक्षात् श्रवण करके वादशांगशास्त्रोंकी रचना की थी, उसी तरह उनके बंगभूत कितने ही शास्त्रोंकी रचना पूर्वोक्ति प्राचार्याने भी की है, जिनसे विवत्समाज और साधारण जनता आज भी लाभ उठा रही है. उनके हम अत्यन्त वृत्तज्ञ हैं, जिनके प्रकाशसे हम कुछ अनुगमपूर्वक लेखनी चला पाये हैं। मैं कोई इतिहासा नहीं है, न कोई ख्यातिप्राप्त लेखक विद्वान् हूँ, तथापि चंचुप्रवेशम्यायसे जो कुछ प्राप्त कर सका हूँ, वही आपके सामने रख रहा हूँ, आप निर्णय कीजिये और विशेष परिचय मुझे न होनेसे अन्धकारोंके बारे में अधिक लिस्बनेसे वंचित है, जिसका मुझे स्वेद है। इतना कुछ लिखनेका भी आधार 'आत्मधर्म' गजटका वर्ष २४ अंक दूसरा है, उसका मैं अत्यन्त आभारी है. मैं चाहता था कि कोई अन्य प्रसिद्ध विद्वान् उपोद्घात लिखता और इसके लिये प्रयत्न भी किया, किन्तु न जाने क्यों सफलता नहीं मिली, अमस्या मुझे खुद ही यह कुछ लिखना पड़ रहा है, पाठक क्षमा देंगे । यह अन्य, कलेवर ( २२६ श्लोक ) छोटा होने पर भी गजबका है, जैनागमका हृदय है, पाठकों द्वारा अवश्य पठनीय है, भाषा और भाव यथासंभव विकर बनाये गये हैं, साथ हिन्दी पद्यानुवाद मी लिख दिया गया है, जिससे सर्वोपयोगी बन गया है । अनेक अन्योंके उद्धरण व भाव देकर इसको समिपूर्ण सुन्दर थ ग्राह्य बनाया गया है। परिशिष्ट आदिमें उलयनपूर्ण विषयोंका यथासं भय काफी खुलासा किया गया है । यद्यपि इस ग्रन्थकी भाषाटीकाएँ अनेक लिखी गई है, किन्तु संभवतः इसमें कुछ विशेष सामग्री मिलाई गई है । अतएव यह ग्रन्थ आदरणीय होगा ऐसा मेरा विश्वास है । बुटियोंकी सूचना पानेका मैं अभिलाषी एवं कृता रहूँगा 1
कृपेच्छुः सन्तोषमवन, कटराबाजार, सगर
मुन्नालाल रांधेलीय (वर्णी)
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