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________________ पुरुषार्थसिदिधुपाय नहीं है अतएव उपादान शुरूप रहता है और निमित्त गौण रहता है यह अनेकान्तदृष्टि है । यह सात्पर्य है तभी तो ___ 'उपादानका बल जहां, नहीं निमित्तको धात्र, एकचक्रसों चलत है रविको यही स्वभाव ।। पं० बनारसोवास नाटकसमयसारमे लिखते हैं। उपादान हमेशा वस्तुका गुण या स्वभाव होता है और दिमित हमेशा पर होता है यह भेद है। अथवा स्वक्ष्या ( आत्मरक्षा-वीतरागता ; और परदया ( अन्य जीवका उद्धाररूप शुभराग का कथन या प्रदर्शन इस श्लोकमें खासकर बतलाया गया, जो अहिंसा व हिसारूप है।। लोक नं० १२४में, सम्प्रदर्शनके घोर ( घासक ) ग्रथम कषाय ( अमंशानुबंधी ) को बतलाया है, उसका अर्थ, स्वरूपाचरणाचारित्रके वे चोर हैं ऐसा समझाना चाहिये, कारण कि उन्हीं आचार्य महाराजने पंचास्तिकायको गाथा मं० १३७ की टीकामें लिखा है कि 'तत् कायाचिकविशिष्टकषायक्षयोपशमे सत्यझानिनो भवति' अर्थात् वह अकालुष्यरूप शुभपरिणाम, अर्मतानुवंधोकशपके क्षपोपशम होनेपर अज्ञानी ( मिथ्यावृष्टि के भी होता है। यदि अनंतानुबंधोकपाय सम्यक्त्वका घातक होती तो, उसके क्षयोपशम होनेपर उस जीवके क्षयोपशम सम्यग्दर्शन होता और वह ज्ञानी कहलाता, अज्ञानी न कहलाता, फिर अज्ञानीके अकालुथ्य होता है यह क्यों कहा गया यह प्रश्न है ? उसका ध्वन्यर्थ यही है कि अनंतानुबंधी कषाय स्वरूपाचरणचारित्रकी ही घातक है, इसलिये उसके क्षयोपशम होने पर भी जीव अशानी रह सकता है, मानी या सम्यक्ती नहीं होता अन्यथा दोष आता है विचार किया जाय । टोका वाक्य स्पष्ट है। --लोक नं० २११ में जो मोक्षके उपायमें व संसार ( अंध) उपायमें मतभेद रखते हैं तथा अर्थभेद करते हैं, उनके लिये पंचास्तिकायकी गाया नं० १५७का ठोस प्रमाण समझकर विवाद मिटा देना चाहिये जो निम्न प्रकार है। ततः परवरितप्रवृत्तिर्बन्धमार्गः एव न मोक्षमार्गः इलि' अर्थात् रागादिकषायभावरूप परिणति या प्रवृत्ति, बंधका ही मार्ग है-मोक्षका मार्ग नहीं है, यह खुलासा है तब सोधे अर्थ को बदलकर अनर्थ करना ( भोक्षका मार्ग मानना पक्षपात या काय पोषण करना नहीं तो और क्या है? ठंडे दिलसे विचार किया जाय वैसे आगेके श्लोकमें अंशका भेद करके बंधमार्ग व मोक्षमार्ग बतलाया ही है। जब तक संगति न बैठे तबतक मान्यता गलत होती है, सत्य नहीं होती।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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