SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२. पुरुषार्थसिद्धमुपाय येनांशेन तु ज्ञानं तेनांशेनास्य बंधनं नास्ति । येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बंधनं चास्ति ॥ २१३ ॥ येनांशेन चरित्रं तेनांशेनास्य बंधनं नास्ति । येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बंधनं चास्ति ।। २१४ ।। है अपूर्ण अबसक रत्नत्र्य, बंध मोक्ष दीमी होते । पर कारण दोनोंके दो हैं, एक नहीं कबहू होते ।। यथा .... राम बंधका कारण होता, जितने अंश साथ होस । दर्शन कारण है 'अधका, यीसागता मय होता ।। २५२ ॥ इसी तरह हानादिक दोनों, जितने अंश शुद्ध होते । उतने अंश मोक्ष होता है, बंध राग साहि करते ॥ १३ ॥ अंशरूपसे दोनों होते, पूर्ण रूप नहिं होते हैं। पूर्णरूप होने के स्वानिर, सगक्षय सय करते हैं ।। २१३॥ अन्वय अर्थ-आचार्य कहते हैं कि [ योनांशेन सुदृष्टिः ] जितने अंग वीतरागता सम्यग्दर्शनके साथ रहती है [ सेनाशेनास्य अंधन नास्ति ] उत्तने अंश सम्यग्दष्टि के बंध नहीं होता। [तु येनाशन रागः ] और जितने अंश सम्यादर्शनके साथ राग रहता है [ सेनांशेन अस्य बंधनमस्ति ! उतने अंश सम्यग्दष्टिके बराबर ( अवश्य ) बंध होता है क्योंकि रागबंधका कारण माना गया है। इसी तरह [सु येनोशेन ज्ञान ] जितने अंश ज्ञानके साथ वीतरागताका रहता है | तैनांशेन अस्य बंधनं मास्ति ] उतने अंश सम्यग्ज्ञानीके बंध नहीं होता। [तु येनांशेन रागस्ते नांशेनास्य गंधसमस्ति ] और जितने अंश सम्यग्ज्ञासीके राग रहता है, उतने अंश उसके बंध बराबर होता है। इसी तरह [येनांशेन चरित्रं, तेनाशेनाध्य बंधन नास्त ] जितने अंश सम्यक चारित्रके साथ बीत रामसाका रहता है उतने अंश चारित्रधारीके बंध नहीं होता। [तु येनोशंत रागस्तनांशेनस्य बंधनं अति ] और जितने अंश चारित्रधारीके राग रहता है, उसने अंश उसके बंध होना है, यह खुलासा है। ऐसा तीनों श्लोकोंका अर्थ समझना चाहिये और भ्रमको निकाल देना चाहिये ।। २१२।२१३३२१४ ।। चारित्रके मूल भेव (१) सम्यक्त्वाचरण (२) संयमाचरण । दूसरे शब्दों में (१) निश्चयचारित्र, जो करणानुयोगके अनुसार होता है। (२) संयमाचरण, जो चरणानुयोगके अनुसार होता है। १. मोक्ष २. वीतरागतामय । ३. कर्मके छूटने रूप ४. मोहकर्मका अभाव ।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy