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________________ सकलचारित्र प्रकरण ४०१ गम्यम् ] ये सोन गुप्तियों कहलाती हैं। इनसे आत्माकी रक्षा होती है अर्थात् कर्मोका नवीन आस्रव ( आना ) नहीं होता अथवा संवर होता है ॥२०१॥ भावार्थ- गुप्तिका अर्थ रक्षा होता है । सो वह रक्षा तीन तरहसे होती है अर्थात् ( १ ) मनकी चंचलता को रोकने अर्थात् मनको स्थिर करनेसे आत्माके प्रदेशों में कम्पन नहीं होता जो योग कहलाता है, तब प्रकृति व प्रदेश नामक कर्मका आना-बंधना नहीं होता (संबर होता है ) | इस तरह मनोगुप्तिसे आत्माको रक्षा ( बचाव ) होती है । ( २ ) वचनगुप्ति-शब्दों का प्रयोग अर्थात् उच्चारण न करनेसे ( मौनालम्बनस ) आत्माके प्रदेशों में कम्पन नहीं होता तब कर्मोंका आना बन्द हो जाता है । इस तरह आत्माकी रक्षा होती है । ( ३ ) कायगुप्ति - आवागमन या आकुंचन प्रसारण आदि काकी क्रिया वन्द हो जानेसे आत्मा के प्रदेशों में कम्प नहीं होता, जिसके फलस्वरूप, कर्मका आना बन्द हो जाता है, बस यही आत्मरक्षा है। ऐसी स्थिति में, भविष्य में (आगे) व वर्त्तमानमं लाभ होने के नाते सोनी यिपालना अत्यावश्यक है, संवर-निर्जराका कारण है । प्रश्नोत्तरके रूपमें आलय और बन्धका भेद आव और अन् युगपत् होता है तथापि भेद है अर्थात् लक्षण जुदे-जुदे हैं । कार्माण arer आना अब कहलाता है । और कार्माण द्रव्यका द्वितीयादि समय तक ठहरना बन्ध कहलाता है, यह भेद है । निष्कर्ष - जो अन्य आकर तुरन्त चली जाय, द्वितीयादि समयों तक न ठहरे, वह ईयपिथ आस्रव रूप हैं बन्ध रूप नहीं है उसको बन्ध ही नहीं कहा जा सकता । बृहद्रव्य संग्रह गाथा ३३ की टीका में देख लेना ॥ २०२॥ आगे पाँच समितियोंका पालना भो श्रावकका कर्त्तव्य है यह बताया जाता है । सम्यग्गमनागमनं सम्यग्भाषा तथैषणा सम्यक् । सम्यग्रहनिक्षेपो व्युत्सर्गः सम्यगिति समितिः ॥ २०३ ॥ पद्य भकार देशोधनकर, प्रवृति समिति कहलाती है । पाँचभेद उसके होते हैं - मुनिजनके मन भाती ॥ ई भाषा भोजन सम्यक् ग्रहण त्याग ये पाँचों नाम : इनका पालन है आवश्यक - पुण्यबंध होता है आम || अन्वय अर्थ --- आचार्य कहते हैं कि [ सम्यग्गमनागमनं सम्यग्भाषा ] सावधानीपूर्वक अच्छी सरह देखभालकर जाना आना, जिसमें जोब न मरें, अच्छे हितकारक वचन बोलना [ तथा सम्यक् १. साधारण सबको होता है । ५१
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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