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________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाये (२) स्तवभाव-धर्मानुरागसे पूज्य या महान् आत्माओंकी स्तुति करना-गुणानुबाद करना स्तव कहलाता है. इससे आदत सुधरती है भक्ति प्रकट होती है। कषायकी मन्दता होती है। इत्यादि वाचनिक क्रिया है। (३) वन्दनाकर्म----पूज्य पुरुषोंको नमस्कार करना, पाँव पड़ना यह विनय है तथा कायिक किया है। इससे पुण्यबंध होता है, आस्तिकता जाहिर होती है। (४) प्रतिक्रमण-किये हुए दोषों.....अपराधोंका पश्चात्ताप करना अर्थात् उनसे अरुचि या ग्लानि करना, अपनी भूल मनाना इत्यादि। यह शुभ लक्षण है, उदासीनताकी निशानी है । संवर होता है। सारांश यह कि कृतनापों या अपराधोंका स्वामित्व छोड़नेसे भेदज्ञान होनेसे हो वह सब होता है। (५) प्रत्याख्यान----जिन दोषों या अपराधोंसे घृणा या अरुचि हुई हो-उनका आगेको स्थाग कर देना, प्रत्याख्यान कहलाता है। इससे संबर व निर्जरा होती है। यह कर्तव्यशूरता है, करके दिखाना है | आत्मबलकी स्फूति है, जो परका स्वामित्व छोड़नेसे होती है। (६) वपुषो व्युत्सर्ग---शरीरसे भी ममत्व त्यागना---निर्मोह होता है। क्योंकि बाह्य परिग्रहों में सबसे बड़ा परिग्रह अपना शरीर है, जो पुराने साथी-दासके समान है। जीवका उसीसे सारा काम लिया जाता है-उसके बिना कुछ होता नहीं है; अत: उससे बड़ा ममत्व या राग रहता है। तब उससे ममत्व छोड़ना बड़ा कठिन है। लेकिन त्यागी वैरागी पर जानकर उससे भी ममत्व छोड़ देते हैं और घोर परीषह सहन करते हैं, आहार पानी आदि कुछ नहीं देते इत्यादि यह कठोर तपस्या है, संदर-निर्जराको भूमिका है, अतः उत्कृष्ट श्रावकका यह क्रमशः अवश्य ही दैनिक कर्तव्य है-आवश्यक है ।। २०१॥ आगे उत्कृष्ट श्रावकका और क्या कर्तव्य है, यह बताया जाता है । तीन गुप्तियोंका पालन करना सम्यग्दंडो वपुषः सम्यग्दंडस्तथा च वचनस्य । मनसः सम्यग्दंडो गुप्तीनां त्रितयमवगम्यम् ॥२०२।। पध मन वच शनको वश करना, गुमित्रय कहलाता है। गुझिकरनसे बोगत्रयका अवरोधन हो जाता है। आत्रब और बध रुकता है, योगत्रयके रोधनसे । उससे लक्ष्य होत है पूरा, वत्तियोंका श्रय सेवनसे ॥२०॥ अन्वय अर्थ----आचार्य कहते हैं कि [ वपुषः सम्यग्दवः सथा बच्चनस्थ सम्यग्दंशः स मनसः सम्यग्दंडः ] शरीरका नियन्त्रण करना ( गति अवरोध होना ) बचनका नियन्त्रण करना ( बोलना बन्द करना) और मनको स्थिर करना (नियन्त्रण करना चंचलता रोकना) [गुतीनो त्रितयमव
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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