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________________ अतिचारप्रकरण व्रव्यप्राणोंका धात न होने पर भी भावप्राणों ( ज्ञानादि ) का घात होना अतिचार माना जाता है-वहो एकदेश व्रतका भंग होना रूप है यह खुलासा है अस्तु । देखो ! चौथे गुणस्थान में, अप्रत्याख्यानकषायकृत असंयमभाव रहता है, और पंचम गुणस्थानमें, ( अणुवतोके ) प्रत्याख्यान कषायकृत असंयमभाव ( सकलसंयमका अभावरूप ) रहता है किन्तु देशसंयमके सद्भावरूप होने पर सर्वथा संयमका अभाव नहीं पाया जाता। छठवें गुणस्थान में प्रत्याख्यान कषायका अभाव हो जानेसे सकलसंयम हो जाता है। फलत: संयमकी चालक तीन ऋषाएँ हैं। यथा अनंतानुबंधोकषाय-जिसके उदय में संयम रचमात्र नहीं होता, २ अप्रत्यख्यानकषाय ----जिसके उदय में एकदेश ( अणुव्रतरूप ) संयम नहीं होता, ३ प्रत्यास्यानकषाय-जिसके उदयमें सकलदेश संयम नहीं होता ऐसा समझना चाहिये। नोट --'असंयम' शम्दमें मौजद 'अकार' का अर्थ-अभाव, होता है जो तीसरे गणस्थान तक अनंतानुबंधी कषाय के होने से कतई नहीं होता ( न द्रव्यरूप होता है न भावरूप होता है। चौथे गुणस्थानमें अनंतानुबंधी कायका उदय' म होने पर भी चरणानुयोगका द्रव्यसंयम नहीं होता, कारण कि बड़ा अप्रत्याख्यानमायका उदय होलेसे नहीं होता तथा पांचवें गुणस्थान में प्रत्याख्यानका उदय होनसे पूर्ण संयम नहीं होता है यह खुलासा है ।। १८३ ।। मिथ्योपदेशदान रहसोऽभ्याख्यानफूटलेखकृती। न्यासापहारवचनं साकारामंत्रभेदश्च ॥१४४ ॥ पद्य कर संकलर कुमार्ग देशमा, गुह रहस्य प्रकर करमा । ठलेख अरु वश्चम कपटक समझ इशारा कह देना। ये अतिचार सतवतके इनका स्याग उसे करना। प्रयोजनरहित कार्यमें देखो, सदा सावधानी रखना ॥ १८४३॥ १. सापेक्षस्य ते हि स्यादतिचारोंदा जसम् । मन्त्रतन्त्रप्रयोगाद्याः परेग्यू ह्यास्तथास्ययाः ।। १८ । सागार, प. ४ अध्याय द्रव्यहिंसाके त्यागी प्रती ( अखंड बती ) के एकदेश अर्थात् द्रन्यसे या भावसे हिंसाका हो जाना अथवा अहिंसावसका एकदेश खंडित हो जाना, अतिचार कहलाता है, यह लक्षण अतिधारका है। रागादिकका होना भावहिंसा है और व्यापारादि ( किया ) का होना द्रयहिंसा है यह भेद है । २. असंयमके 'अकार के ३ तीन अर्थ.. पूर्ण अभाव अर्थात् द्रव्य व भाव कोई संयम नहीं, २. द्रव्यसंयम का अभाव. ३. एकदेश संयमका अभाव इति । ऊपर खुलासा है अस्तु । उक्त च....को इंदिसु निरदोनो जीवे यावरे ससे वापि इत्यादि माथा २९ जीषकाण्ड । ३. मोक्षमार्गके प्रतिकूल उपदेश देना। ४. झूठा लेख लिखना या श्वंगरूप या अन्योक्तिरूप लेख लिखना । मिथ्योपदेशरहोऽभ्याख्यानफूटलेखक्रियान्यासपहारसाकारमंत्रभेदाः ॥ २५ ॥ १० मुक अ०१७ ५. दो अर्थ वाले बचन बोलना या मुहमिल बचन कहना ( अस्पष्ट कहना )।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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