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________________ शिक्षाप्रकरण at rating सति सलीसहि संज्ञता । ते होंति वन्दनीया कम्म णिज्जरा माहू ॥१२॥ असे जे लिंगासम्म सेजल । खेले य परिगडिया ते भलिया इमिजाय ||१२|| ३५१ अर्थ --- जो संयम सहित हों -- आरंभ परिग्रहरहित हों, दिगम्बर मुनि हो । ६७ गुणस्थानवर्ती ) तथा शक्तिधारी २२ बाईस परीग्रह सहन करनेवाले हो ( श्रेणी माइनेवाले अष्टमादि गुणस्थान ) वे सुरअसुर व मनुष्योंकर वन्दनीय हैं, उनको साष्टांग नमस्कार करना चाहिये या बन्दना शब्द उच्चारण करके विनय करना चाहिये। शेष जो वस्त्रधारी होकर भी तो हैं ( पांचवें गुणस्थानवाले ) उनको इच्छामि कहकर विनय करे । अर्थात् हम आपके व्रतोंकी इच्छा करके विनय करते हैं इत्यादि । तथा जो अती वस्त्रधारी हैं, उनको जयजिनेन्द्र या जुहार कहकर विनय करना चाहिये यह तीन भेदरूप निर्धार बिनयका है। तथा बदले में मुनि आदि श्रावकको दर्शनविशुद्ध या स्वस्ति कहकर आशीर्वाद देवें ऐसा खुलासा समझना चाहिये किम्बहुना 1 नोट --- इस विषय में प्रचलित पद्धति भिन्न-भिन्न प्रकार है । उसको यथासम्भव ठीक व संगत करना चाहिये । पांवधोक ( पात्र पढ़ना ) वगैरह यह लोकिकजनोंमें भी होता देखा जाता है अतएव उससे ठीक-ठीक निर्धार नहीं होता । मोक्षमार्गी या धर्मात्माओंका आचरण, श्रद्धा और आगमकी आज्ञा के अनुसार रहा करता है, उसका हमेशा ख्याल रखना चाहिये, लोकरूढ़ि कोई धर्म नहीं होता यह नियम है। सामान्यतः नमस्कार क्रियामें पांव पढ़ना भी गर्भित हो जाता है। निर्धार कर लेना अस्तु । विवादका वस्तु नहीं है । यहाँ तक नैष्ठिक श्रावकका वर्णन समाप्त हुआ । प्रसंगवश १२ बारह विरतोंसे ११ ग्यारह प्रतिमाओं का निर्माण और are count her fकया जाता है । भूमिका यहां प्रश्न होता है कि व्रत और प्रतिमायें क्या अन्तर है तथा सामायिक शिक्षाव्रत एवं सामायिक प्रतिमा में क्या अन्तर है ? आगे भी प्रोषधोपवान शिक्षावत और प्रोषधप्रतिमामें क्या अन्तर है ? इसका समाधान निम्न प्रकार है
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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