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________________ RS8 ३१० पुरुषार्थसिद्ध ग्रुपाय भावार्थ-प्रोषधोपवासका साधारण अर्थ, एकाशनपूर्वक उपवास करना होता है अर्थात् पर्वके एक दिन पहिले दोपहर । आधादिन ) से उपवासको शुरू ( प्रारम्भ ) कर देना और १६ पहर या १२ पहार या ८ पहर में समाप्त करना इस तरहसे उत्तम-मध्यम-जघन्य ऐसे तीन भेद उपवासके हो जाते हैं। जैसे कि पहले दिनके दोपहरसे लेकर तीसरे दिन दोपहरको पुजनादि कर उपवास खोलना अर्थात् प्रासुक आहार लेना, उत्तम १६ पहरका उपवास है । तथा पहिले दिनके शामसे उपचास प्रारम्भ करके तीसरे दिनके प्रातःकाल पूजनादिकर खोलना मध्यम उपवास है। इसमें १२ पहर होते हैं । और उपवास अर्थात् पर्वके दिन ही प्रातःकालसे प्रारम्भ कर दूसरेदिन पूजनादि कर उपवास खोलना जघन्य उपवास ८ पहरका होता है। उपवासके दिन सारा समय धर्मध्यानमें विताना चाहिए। किन्तु अन्य गृहस्थोके कामोंमें समय खर्च नहीं करना चाहिए वह कीमती समय है।।१५।। अथवा दूसरे तरह उपवासके भेव (१) के समा अन्न बाल कुछ भी ब्रह्म नहीं करना, उत्तम उपवास कहलाता है जो १६ पहरका होता है। (२. उपवासके दिन अक्तिहोनतावश सिर्फ उष्ण पानो एक बार ले लेना, मध्यम उपवाम १२ पहरका कहलाता है। (३ ) उपवासके दिन थोड़ा (नोदर ) आहार ( अन्नादि ) ले लेना जघन्य उपवास कहलाता है । इस विषयमें मार्गभेद पाया जाता है जो आगे बताया जा रहा है, अस्तु । प्रोधधोपयासका लक्षण--(स्वामिसमन्तभद्राचार्य) चतुराहारविसर्जनमुपचास: भीषधः सद्भुक्तिः ।। स प्रोषधोपचासो अदुपोश्यारम्भमाचरति ॥१०॥ रत्नकरण्श्रावका० अर्थ-...चारों प्रकारका ( अशनखाद्यस्वाद्यय) आहार त्याग देना अर्थात् नहीं करना उपवास, कहलाता है। और दिनमें एक ही बार भोजन करना प्रोषध ! एकाशन ) कहलाता है। तदनुसार प्रषिधपूर्वक उपवास करना 'प्रोषधोश्वास, कहलाता है' यह लक्षण है। अभिप्राय (प्रयोजन ) में पूज्य अमृतचन्द्राचार्य और समन्तभद्राचार्यमें कोई भेद नहीं है सिर्फ शब्दार्थ भेद है। प्रोपधका अर्थ पर्व होता है और एकाशन ( सकृद् भुक्ति) होता है, इत्यादि समझना । क्रिया 'दोनोंकी एक-सी है, अस्तु, कोई विरुद्धता नहीं है आगमके अनुकूल है। . इसी तरह एकार्थता अन्यत्र है श्लोक नं० ११४ में लिखे गये 'प्रतिपूजा' पद और श्लोक नं० ११९ में लिखे गये 'परिचरण' पदका, एक हो अर्थ है अर्थात् अर्थभेद नहीं है। उसका अर्थ 'वैय्यावृत्य' या उपासना या सेवासुश्रूषा होता है। सिर्फ पात्रभेद पाया जाता है। अर्थात् गुरु (धर्मगुरु मुनि ) की वैयावृत्त्य १. एक बार भोजन करना ।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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