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परिपरिमाणात
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अन्य अर्थ -- आचार्य कहते हैं कि [हांकुरचारिणि मृगशावके मूर्च्छा भन्दा भवति ] हरे घासको खानेवाले मृग ( हरिण) के बच्चे में मूच्र्छा मन्द अर्थात् क्रमती या मामूली होती है और [ उदरनिम्माथिनि मार्जारे व सीधा जायते ] चूहों के समुदाय ( कुल ) को खाने वाली बिल्ली में वही मूर्छा तीव्र ( अधिक ) होती है । इस तरह मूर्च्छा अनेक तरहकी होती है---एक सरहको ( समान ) नहीं होती, यह तात्पर्य है ।। १२१||
भावार्थ-असंख्यात लोक प्रमाण suraraaसामस्थानोंके भेद हैं--उत्तम मध्यम ज स्यादिके भेदसे । अतएव जैसे जिसके परिणाम ( मुर्च्छारूप भाव ) होते हैं वैसा ही फल उनको मिलता है अर्थात् उन परिणामों के अनुसार हिंसा पाप लगता है और नवीन कर्मोका बन्ध भी कम बढ़ होता है, एवं फल स्वरूप दुःख आदि भी कमबढ़ होता है ऐसा समझना चाहिए। तीव्र मन्द मूर्च्छा ( आसक्ति या राग ) का परिचय बाहिर देखने में भी बिल्ली व मृगके बच्चोंमें खुलासा आता है । बिल्ली के बचे में अत्यन्त आसक्ति रहती है क्योंकि वह अपनी शिकार में या दूध वगैरहके पीने में इतना मस्त आसक्त या गृद्ध रहता है कि हा वगैरह मार पड़ने पर भी उसे नहीं छोड़ना चाहता, जिससे मालूम पड़ता है कि उसके अत्यन्त तीव्र मूर्च्छा है । तथा हरिणके बच्चे में इतनी कम ( मन्द ) मूछों है कि वह थाई से भय या खटका गालूम होने पर तुरन्त खाना (घास ) छोड़कर भाग जाता है। इस तरह दोनोंका प्रत्यक्ष परिचय मिलता है । तदनुसार दोनोंको कमबढ़ हिंसा पाप लगता है और पापका बन्ध भी वैसा ही होता है । अतएव मूच्छ ( ममता ) त्यागने योग्य ही है, चाहे वह मनुष्य या पशु किसोके भी हो वह आफतका हो घर ( स्थान ) है । अस्तु, उक्त प्रकारसे वादीका तर्क ( समानताका ) खंडित हो जाता है ॥ १२१ ॥
आचार्य कहते हैं कि निश्चयसे मूच्छ में तरतमभाव (हीनाधिकता ) स्वभावतः ( प्राकृतिक ) होता है वह कृत्रिम या नैमित्तिक नहीं है, परन्तु व्यवहारसे वैसा कहने में आता है जो उपचार है । चेतन अचेतन वस्तु तरतम भाव | परिणमन ) निराबाध ( अप्रतिहत ) रहता है यथा
निर्बंध संसिद्धयेत् कार्यविशेषो हि कारणविशेषात् । astriडयो माधुर्यप्रीतिभेद
इव ॥१२२॥
पद्य
कार्य विशेष ata है वैसा जैसा कारण होता है । कारण के अनुसर कार्य का होना जग विख्याता है ||
दूध खाँड़ दोनों ये कोरण, प्रीति भेद के करता है ।
जैसा मीठा तैसी प्रीति नहि विवाद कोई भरता है ॥ १२२ ॥
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१. बाधा रहित, निर्विवाद, स्वभावतः ।
पदार्थ या द्रये ।
किरी करा आगमण जैम
मराटवासी दुखानं नदापुर