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________________ अहिंसाणुषस सुपरखमाप्ति होती मुश्किलसे बड़े पुण्यका बह फल है। अतः मारना सुखियाको रे, अथ बह सुख में निश्चल है । यह कुतर्क है बुष्टममोका, फल इसका उल्टा होता। मही मारना सुखोजनाका, सुख तो करनी से होता ॥१६॥ अन्वय अर्थ-..जादी कहता है कि [ कृच्छेप सुखावाप्तिभंत्राप्ति ] सुखको प्राप्ति बड़ी कठिनाईसे होती है । पुण्य और लपस्था आदिसे होती है ) असाएय [ सुखिनः हताः सुखिन एव भवन्ति ] सुख सम्पन्न जोबौंको मार डाला जाय तो वे सुनी ही सदैव रहेंगे। इसका खण्डन किया जाता है कि [इलि तक मंडलानः सुग्लिन पासाय नादेयः । उक्त प्रकारका कुतकरूपी खड्ग ( तलवार धारण करके अर्थात् उक्त कथनपर विश्वास करके कभी किसी सुखी या दुःखी जीवको नहीं मारना (धात करना) चाहिए, उससे धर्म नहीं होता, अधर्म हो होता है 1 सुख-दुःख सब करनीका फल है 'जैसी करनी तैसी भरनी' इत्यादि ।।८६।। भावार्थ-मिथ्या बासना वश जोन तरह २ के विकल्प ( तक ) करके कषाय पोषण करते हैं म उसी के अनुसार प्रवृत्ति न आवरण भी करते रहते हैं। जिसका फल उन्हें अनन्त संसारका दुःख भोगना पड़ता है, उन्हें सुखशान्ति कभी नहीं मिलती। अतएव जब वह मूलको भूल (मिथ्यावासना ) मिटे तब ही उस जीवको ( या सभी जीवोंको ) सुबुद्धि ( यथार्थ ज्ञान व श्रद्धान) उत्पन्न हो, और वैसी ही प्रतीति हो तथा उसी के अनुसार वह यथार्थ प्रवृत्ति (आचरण चारित्र) करके { अहिंसारूप रत्नत्रय धर्म धारण करे ) सुखी होवे या मोक्ष जावे, दूसरा उपाय नहीं है, चाहे कोई कितना हो उपाय क्यों न करे! सब झूठ है। यह वीतराग सर्वज्ञका उपदेश है-अल्पज्ञानी रागी द्वेषियोंका उपदेश नहीं है । इस पर विश्वास या श्रद्धान हुए बिना सब निरर्थक है---भटकना है । दुःख है कि प्रायः सारा संसार सत्यको भूला हुआ है और असत्यका उपासक हो रहा है इसका विचार करना चाहिए। अन्ध सर्प विल प्रवेश' न्यायसे लोग सुमार्ग पर नहीं आते, इधर-उधर तफले हुए घूम रहे हैं व दुःख भोग रहे हैं। भला यह कहाँका न्याय है कि सुखियों को मार डालने से वे सुखी रहेंगे और मारनेवाले भी सुखी हो जायेंगे? यह तो अन्याय है 'कोई करे और कोई पावे' यह न्याय कैसा ? जो करता सो भोगता, न्याय तो ऐसा है। यदि ऐसा होने लगे तो लोक व्यवस्था हो सब गड़बड़ हो जाय, यम-नियम आदि धर्मशास्त्रको बातें झूठो व बेकार हो जायें। तथा किसो जीबको मारना, यह दया ( धर्म ) है कि निर्दयता ( अधर्म ), यह भी तो विचारता चाहिये ? परन्तु सम्यग्ज्ञान र यथार्थ ज्ञान ) के बिना सब अन्धे हो रहे हैं किम्बहुना 1 अन्याय व अधर्मका त्याग करनेवाला शूरवीर है और उसका गोषनेवाला व छिपानेवाला कायर है, वहन स्वयं तर सकता है न दूसरोंको तार सकता है। ठगिया धोखे बाज अथवा चतुर चालाक जीव भोले भाले जीवोंको गुमराह करके...-उल्टा १. साधना या शुद्ध परिणाम ।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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