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________________ धर्मप्राप्तिकी मूमिका २१॥ या प्रवृत्तिरूप है ऐसा समझना चाहिये । तभी तो यहाँपर यह कहा गया है कि जो लोग (श्रावक) पूर्ण अहिंसावत या धर्म धारण नहीं कर सकते, कारण कि उनके भोग व उपभोगके साधन (व्यापारकृषि आदि) मौजूद रहते हैं, जिनमें खासकर स्थावर ( एकेन्द्रो ) जीवोंकी हिंसा होती है, उसका त्याग करना अशक्य व असंभव है । उनको असहिमा ( द्वीन्द्रियादिका घात) का त्याग तो यथाशक्ति करना हो चाहिये अथवा जो अप्रयोजनभूत स्थावर हैं उनका भी त्याग करना चाहिये, क्योंकि प्रयोजनभूतका ) त्याग नहीं किया जा सकता। ऐसा करना यद्यपि अपवाद मार्ग है ( पूर्णवीतरागता. रूप या पूर्णअहिंसारूप बनाम पूर्णनिवृत्तिरूप या निश्चयरूप नहीं है ) तथापि एकदेशरूप याने कुछ सरागरूप कुछ विरागरूप, कुछ प्रवृत्तिरूप कुछ निवृत्तिरूप होनेसे वह एकदेशव्रत या धर्मको पालने वाला अणुव्रती या अहिंसाधर्मी माना जायगा और उसका जीवन मोक्षमार्गी (कथंत्रित) होनेसे सफल होगा किम्बहुना । सर्वथा धर्म रहित जीवन निरर्थक है ऐसा समझना ।। ७४ ॥
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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