SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थासामुपाय नोट-ये सब ज्ञान बीयन्तिराय कर्म, व ज्ञानावरणी कर्मके क्षयोपशम होनेपर ही होते हैं, विना उनके नहीं होते ऐसा नियम है अस्तु । (२) श्रुतज्ञान-मतिज्ञानसे जाने हुये पदार्थोंकी विशेषताओंको जाननेवाला ज्ञान श्रुतज्ञान कहलाता है। जैसे सूर्यका ज्ञान होनेपर दिनका ज्ञान होना या चन्द्रमाका ज्ञान होनेपर रात्रिका ज्ञान होना इत्यादि। श्रुतज्ञानके दो भेव ( १ ) अक्षरात्मक ( शब्दज)। (२) अनक्षरात्मक (लिंगज )। अक्षरात्मक श्रुतज्ञानके दो भेद ( १ ) अंगबाह्य ( अनेक भेद रूप ) (२) अंगप्रविष्ट ( १२ भेद रूप ) । अथवा (१) द्रव्यश्रुत (२) भावश्रुत नोट-इसका विशेष कथन इसी श्लोकके अन्त में किया गया है सो समझ लेना । ( ३ ) अवधिज्ञान----जो ज्ञान, द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सौगा सहित रूपी पदार्थाको एकदेश स्पष्ट जाने या जानता हो, उस ज्ञानको अवधिज्ञान कहते हैं। उसके सामान्यतः ३ सीन भेद होते हैं ( १ ) देशावधि (२) परमावधि ( ३ ) सर्वावधि । अथवा ( १ ) भवप्रत्यय अवधि क्षयोपशम निमित्तिक अवधि । ( क ) भवप्रत्यय (निमित्तक ) अवधि-देवनारकी और किसी २ मनुष्य तिर्यचके भी होता है। ( ख ) क्षयोपशम निमित्तक अवधि---मनुष्य और तिथलोंके ही होता है। उसके ६ छह भेद होते हैं यथा वर्तमान-हीयमान-अनुगामी-अननुगामी-प्रतिपाती-अप्रतिपाती इति (१) जो समय २ बढ़ता ही जाय, उसको बर्द्धमान कहते हैं। जैसे सूर्यका प्रकाश । (२) जो समय २ घटता ही जाय, उसको हीयमान कहते हैं। जैसे आयु कर्मके समय । (३) जो एक भवसे दूसरे भवमें भी साथ चला जाय, उसको अनुगामी कहते हैं जैसे कर्म। ( ४ ) जो साथ न रह जाय, उसी पर्याय में साथ छोड़ देवे, उसको अन्ननुगामी कहते हैं जैसे शरीर। ( ५ ) जो नष्ट हो जाय अर्थात् छूट जाय, उसको प्रतिपाती कहते हैं, जैसे रागादिक । (६) जो मष्ट न हो अर्थात् छूटे नहीं, उसको अप्रतिपाती कहते हैं, जैसे ज्ञानादिकगुण ।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy