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मानभंग से उत्पन्न हुए दुःख के अतिरिक्त अन्य कोई दुःख सुख की हानि करनेवाला नहीं है ।
मानशाली अपना पराभव सहन नहीं कर सकते ।
मानी ( स्वाभिमानी ) मान को ही प्राण समझते हैं ।
अहंकारी लोग सब कुछ करते हैं ।
मानी मनुष्य प्रणाम मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
मानी ( स्वाभिमानी ) का जीवन संसार में सुखी होता है ।
तिरस्कार से प्राणियों को परम दुःख होता है ।
अपमान से तथा तज्जन्य दुःख से तो मर जाना परम सुख है ।
संसार में वह मनुष्य पुण्यात्मा है जो माता के प्रति विनयी होता है ।
कुलीन मनुष्यों में विनय स्वभाव से ही होता है।
जहां मनुष्य अपरिचित होता है वहां उसका प्रादर नहीं होता । बड़ों की चरणसेवा से बड़प्पन प्राप्त होता है।
सरल परिणामी मनुष्य को ठगने में कोई चतुराई नहीं है ।
-दूसरों के प्रति सद्भाव दिखाना हो मनुष्य का उपकार है ।
शत्रुनों की परस्पर मित्रता महान भय का कारण होती है । तिर्यंच भी बन्धुजनों के साथ मंत्रोभाव का पालन करते हैं । एकचित्त हो जाना ही मित्रता है।
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