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________________ MARATHIMAmitabasinginuictionariyanastanisneyasanslationRIMAR - चितवृत्तियां विचित्र होती हैं । ..-- विद्या और धर्म में रति (प्रवेश ) स्थिरचित्तवालों को ही होती है । ..... सौहार्द वही है जिसका अनुभव मित्रजन आपत्ति के समय करें । - लोगों के चित्त को समझना कठिन है । ..... मन को गति विचित्र होती है। -- गुणों में मन लगाना चाहिये, इन्द्रजाल से कोई लाभ नहीं है । .... सब शुद्धियों में मन की शुद्धि ही प्रशस्त है । -- सत्पुरुषों के मा को शुद्धि ही इस लोक में कीटों के रोगेकाली है। - काम और क्रोध से अभिभूत लोगों का मन मोह से प्राक्रान्त हो जाता है। -~- मध्यस्थ दुःखी होता ही है। - मध्यस्थ सबको प्रिय होता है। ..... तीव्र प्रतापियों को मध्यस्थता भी संतापकारी होती है। .- नदी के क्षोभ से क्या समुद्र क्षुब्ध नहीं होता। ---- संसार में महापुरुषों के चरित्र को सब जानते हैं । -... दुर्जनों से सताये जाने पर भी महापुरुष विकार को प्राप्त नहीं होता। -- महापुरुषों के मित्र महापुरुष ही होते हैं । .-- महापुरुष चरणों में पड़े शत्रुओं की भी वृद्धि करते हैं ।
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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