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परित्याग के बिना कभी भी प्राशा / तृष्णा नष्ट नहीं होती ।
मोहू और इन्द्रिय-विषयों के सिवाय अन्य कोई अहित और अशुभ करनेवाला नहीं है ।
कर्मों के लव से जीवों का संसार सागर में पतन होता है ।
बन्धुजन बंधनों के समान हैं ।
मोक्ष के शिवास और कोई शास्वत सुख दिखाई नहीं देता ।
तप और रत्नत्रय के अतिरिक्त हितकारी (मुक्तिसाधक) अन्य कोई नहीं है ।
संबर के द्वारा ही सत्पुरुषों को मुक्तिश्री की प्राप्ति होती है ।
रत्नत्रय के सिवाय अन्य कोई दूसरा मुक्ति का मार्ग नहीं है ।
संबर के बिना मुक्ति नहीं हो सकती और मुक्ति के बिना सुख नहीं मिलता ।
जिससे निर्धारण (मोक्ष) मिलता है उससे अन्य कोई भी कार्य होना कठिन नहीं है।
देव की भावपूर्ण
भक्ति इष्ट की पूर्ति करती है ।
के समान कोई और वस्तु कल्याणकारी नहीं है ।
पूज्य पुरुषों की पूजा से आरंभ किये हुए कार्य अवश्य ही सफल होते हैं। सत्पुरुषों के कीर्तनरूपी रस का कीर्तन करनेवाली रसना ही रसना है । महापुरुषों के कीर्तन से पाप दूर हो जाता है ।
श्रेष्ठ श्रोष्ठ वे ही हैं जो सत्पुरुषों का कीर्तन करने में लगे रहते हैं । भक्ति कल्याणकारिणी होती है ।
gorate और आरोग्यदायक दिवाभोजन प्रशंसनीय है ।
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