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-- सार में गर्म सिवन्द सा कोई माया काही नहीं है। -- धर्म से ही प्रापत्तियों का प्रतिकार होता है ।
धर्म ही अविनाशी निधि है। धन, ऋद्धि, सुख और सम्पत्ति इन सबका मूल कारण धर्म ही है ।
धर्म कामधेनु है । ----- धर्म महान चिन्तामणि है। ..... धर्मात्मा पुरुष ही दूसरों को दण्डित करने में समर्थ है ।
- धर्मात्मा मर्यादा की हानि सहन नहीं करते । ..... धर्मात्माओं की चेष्टाएं प्रायः कल्याण के लिए ही होती हैं ।
- अधर्म से सुख नहीं मिलता। ..-- अधर्म से नीच गति मिलती है।
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.- प्रात्मध्यान स बढ़कर कोई दूसरा ध्यान नहीं है।
रौद्र तथा प्रातध्यान से जीव नरक में जाते हैं । योग हो समाधि है। योग ही ध्यान है ।
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-धीर मनुष्य जीवित रहे तो बहुत समय बाद भी कल्याण को पा
लेता है। - भानियों का धैर्य प्रशंसनीय है।
- अपनी निन्दा, गर्दा करने से लोग पापों से मुक्त हो जाते हैं।
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