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________________ देव के बिना लक्ष्मी प्राप्त नहीं हो सकती। ..... पाप-भार से बोझिल जीव नरकों में उत्पन्न होते हैं । बुरे कर्मों का फल कड़वा होता है। Ampe .... योग्य कार्य में उद्यम करना उचित है। ----- उद्यम से अदृश्य उत्तम फल भी प्राप्त हो जाता है । .... पौरुष को नष्ट करनेवाले भाग्य को धिक्कार है। --- केवल पुरुषार्थ ही कार्य सिद्धि का कारण नहीं है । ---- फलहीन प्रयत्न प्रत्येक बुद्धिमान् को दुःखी करता ही है । ..... क्रोध-लोभ और गर्व का त्याग ही धर्म कहा जाता है। ---- धर्म के कारण आपत्तियां भी पुरुषों को शीघ्र ही सम्पत्ति प्राप्त करा देती हैं। धर्म से प्राणियों को निश्चित रूप से इष्ट सुखों की प्राप्ति होती है । .-- धर्म के प्रभाव से मनुष्य को सब कुछ मिल जाता है। ..... धर्म के प्रभाव से अग्नि जलरूप हो जाती है, समुद्र स्थल के समान हो जाता है। जीवों पर दया करना, सत्य बोलना और संयम पालना धर्म है। ----- तीनों लोकों में त्रिवर्ग की प्राप्ति धर्म से ही कही गई है । --- धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है। -- शरणार्थी-जनों के लिए लोक में धर्म ही उत्तम शरण है ।
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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