SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ share कार्यों को प्रारंभ करनेवाले मनुष्यों को क्लेश ही मिल सकता है । वही कार्य प्रकृत्य है जिससे निन्दा, दुख और पराभव हो । अकार्य में प्रवृत्ति करनेवाले दुःसह्य दुःख संतति को प्राप्त होते हैं। अनर्थ प्रायः अनेक रूपो में आते हैं। कार्य की उत्पत्ति कभी भी कारण के बिना नहीं होती । कारण के रहते हुए कार्य की हानि नहीं होती । इस संसार में कारण के बिना किसी भी कार्य की उत्पत्ति नहीं होती । कारण के बिना कार्य नहीं होता । कारण के बिना कोई कार्य नहीं होता । कारण के बिना कार्य नहीं होता । बिना कारण के कभी कोई कार्य नहीं होता । بست afat afa के काव्यसृजन के परिणाम को जान सकता है । कविता करने में दरिद्रता नहीं बरतनी चाहिए। सुनी सुनाई बात पर कोध करने से कोई लाभ नहीं । - कुपित शासक को शीघ्र प्रसन्न करना संभव नहीं है । कभी कभी क्रोध भी सुखदायी होता है । कभी कभी कोष से भी क्रोध दब जाता है । १९
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy