SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - बुद्धिमान् मनुष्य को इस लोक और परलोक में सुखदायी कार्य करना चाहिये। ---- सहसा प्रारंभ किया हुआ कार्य संशय में पड़ ही जाता है । ----- बुद्धिमानों के लिए वही करणीय है जिससे इस लोक और परलोक में सुख और यश प्राप्त हो । ..... सत्कार्य करने में तत्पर मनुष्यों को सब सुलभ है। -. सत्पुरुषों की चेष्टा मेघ के समान सब लोगों को सुखप्रद होती है। ..... जिन्होंने उत्तम कार्य नहीं किये हैं वे व्यर्थ ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। - आत्मा के लिए करनेवाले का कर्म महासुख का साधन होता है । ---- पूज्य पुरुषों का उल्लघंन दोनों लोकों में अशुभकारक कहा गया है। --- बुरा कार्य कष्टों की वृद्धि करता है । -- बुरे कार्यों में सब मोहग्रस्त हो जाते हैं। ---- बिना विचारे किये कार्य का फल पराभव के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता । _... बिना विचारे कार्यों से न तो इस लोक में और न परलोक में सिद्धि होती है। --- सफलता के इच्छुक पुरुष को बिना विचारे कुछ भी नहीं करना चाहिये । --- प्रतिकूल समय में प्रकट की हुई शूरता फलदायी नहीं होती । ~~~~- बुद्धिहीन प्रयत्न कभी सफल नहीं होता । --- घर के भस्म हो जाने पर कूप खुदाने का श्रम व्यर्थ है । ..... घर में आग लग जाने पर तालाब खोदने से कोई लाभ नहीं ।
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy