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________________ - मनुष्य की आशा बहुत बड़ी होती है । - धर्मरूपी बंधु के द्वारा जीव प्राशा के पाश से मुक्त हो जाते हैं । विशिष्ट का प्राश्रय सबको विशिष्टता देता है। - मलिन होते हुए भी निरुपद्रवी अधीनों को सब प्राश्रय देते हैं । हीक एक दिन के लिए भी जटा रहता है उससे उसकी प्रीति हो जाती है। - प्राश्रय के सामर्थ्य से मनुष्यों को सब कुछ मिलता है। ---- उत्तम सेवकों और मित्रों के सहयोग से इष्टसिद्धियां मिल जाती हैं । • संसार में समस्त इच्छाएं नि:सार हैं तथा दुःख का कारण हैं । - अन्तविहीन इच्छा को धिक्कार है। - सभी लोग मनोज्ञ विषय को ही चाहते हैं। --- अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति होने पर सबको मानन्द होता है। .... खेद है कि जीव, यम के दांतों के बीच रहकर भी जीवित रहना ___चाहता है। ---- विजय के इच्छुक मनुष्य उपाय करते ही हैं । - अच्छी तरह उन्नत हा व्यक्ति सबका प्राश्रय होता है । ...- अपनी उत्तरोत्तर उन्नति से सत्र प्रसन्न होते हैं । --- उदारचित्तवालों का कोप विनतिपर्यन्त रहता है।
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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