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चतुर मनुष्य उचित कार्य करते समय कभी नहीं चूकते ।
विनाश के समय हठी मनुष्य अपना हरु नहीं छोड़ता ।
प्रभावशाली लोग मितभाषी होते हैं ।
निश्चयवान् सज्जनों का कार्य भी किसी प्रधान पुरुष के बिना नहीं होता ।
पुरुष
विचित्र चित्तवाले होते हैं ।
निर्मल हृदयवाले सवका उपकार करते हैं ।
जो अपने लाभ को नहीं समझता उसका जीवन पशु के समान है ।
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सज्जन पुरुष प्राय: मिथ्यादोष से भी डरते हो हैं ।
सज्जनों से मिलने की उत्सुकता सबको होती है । सज्जन के प्रति योगियों का पक्षपात होता ही है । पकारी पर भी जो करुणा करता है वह सज्जन है । महापुरुषों का मन प्रणाममात्र से शांत हो जाता है ।
दुरात्मा (दुष्ट पुरुष ) लोगों को दुष्ट बना ही देते हैं।
साधु पुरुष गुण और दोषों के समूह में से दोष हो ग्रहण करते हैं ।
खल को पीड़ित किये बिना स्नेह नहीं मिलता ।
दुष्ट पुरुष निर्दोष रचना में भी दोष ही देखते हैं ।
मलिन और कुटिल जन प्रज्ञानियों द्वारा पूज्य और मुमुक्षुओं द्वारा त्याज्य होते हैं ।
स्वच्छन्द दुष्ट योग्य और अयोग्य चेष्टाओं में अन्तर नहीं समझते।
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